कहानी: फिर देहरी पर
कक्षा से बाहर निकलते-निकलते अनुभा ने अनुभव से कहा- अरे, अनुभव, केमेस्ट्री मुझे कुछ समझ में नहीं आ रही है। क्या तुम मेरे कमरे में आकर मुझे समझा सकते हो?
- हां, लेकिन छुट्टी के दिन।
- ठीक है, तुम मेरा मोबाइल नंबर ले लो और अपना दे दो। मैं इस सण्डे को तुम्हारा वेट करूंगी। मेरा कमरा, नीलम टाकीज के पास ही है। वहां पहुंचकर फोन कर देना मैं तुम्हें ले लूंगी।
अनुभव सण्डे को अनुभा के कमरे पर पहुंचा। अनुभा ने बताया कि उसके साथ, एक लड़की और रहती है। वह कम्प्यूटर का कोर्स कर रही है। अभी अपने गांव गई है।
अनुभव ने कहा कि वह केमेस्ट्री की किताब निकाले और जो समझ में न आया है, वह पूछ ले। अनुभा ने किताब निकाली और बहुत देर तक दोनों सूत्र हल करते रहे।
अचानक अनुभा उठी और बोली- मैं चाय बनाकर लाती हूं। अनुभव मना करना चाह रहा था, लेकिन तब तक वह किचन में पहुंच गई थी। थोड़ी देर में वह एक बड़े मग में चाय लेकर आ गई। अनुभव ने मग लेने के लिये हाथ बढ़ाया, तभी मग की चाय, उसकी शर्ट, पेंट पर गिर गई।
सॉरी अनुभव, गलती मेरी थी। मैं दूसरी बनाकर लाती हूं। तुम्हारी शर्ट पेंट, दोनों खराब हो गये हैं। ऐसा करो कुछ देर के लिये टावेल लपेट लो। मैं इन्हें धोकर लाती हूं। पंखे में जल्दी सूख जायेंगे। तब प्रेस कर दूंगी।
अनुभव न-न करता ही रहा , लेकिन अनुभा उसकी ओर टावेल उछालकर भीतर चली गई। अनुभव ने शर्ट-पेंट उतारकर टावेल लपेट लिया। तब तक अनुभा दूसरे मग में चाय लेकर आ गई थी। वह शर्ट-पेंट लेकर धोने चली गई।
अनुभव ने चाय खत्म ही की थी कि अनुभा कपड़े फैलाकर वापस आ गई। उसने ढीला ढाला गाउन पहन रखा था। अनुभव ने सोचा, शायद कपड़े धोने के निमित उसने डे्रस चेंज की हो। सहसा अनुभा असहज महसूस करने लगी, मानो गाउन के भीतर कोई कीड़ा घुस गया हो। अनुभा ने तुरंत अपना गाउन उतार फेंका और उसे उलट-पलटकर देखने लगी।
अनुभव उत्तेजना और संकोच से भर उठा। एकाएक हाथ बढ़ाकर अनुभा ने उसका टावेल खींच लिया। अनुभव अण्डरवियर में सामने खड़ा था। अनुभा उससे लिपट गई। अनुभव भी अपने आपको संभाल नहीं सका। दोनों फिसलन में रपट गये।
अगले सण्डे को अनुभा ने फोन कर अनुभव को आने का निमंत्रण दिया। अनुभव ने आने में आनाकानी की किंतु अनुभा के यह कहने पर कि पिछले सण्डे की कहानी सबको बता देगी, वह आने को तैयार हो गया। उसने आश्वस्त किया कि पिछली बार की तरह वैसा कुछ नहीं होगा।
अनुभव के आते ही वह उसे पकड़कर चूमने लगी और गाउन की चेन खींचकर लगभग निर्वस्त्र बाहर आ गई। अनुभव भी उत्तेजना के चरम शिखर पर था। पिछली बार की कहानी एक बार फिर दुहराई गई। जब ज्वार शांत हो गया, अनुभा उसे लेकर गोद में बैठ गई और उसके अंगों से खेलने लगी।
अनुभा ने पहले से रखा हुआ दूध का ग्लास उसे पीने को दिया। अनुभव ने एक ही घूंट में ग्लास खाली कर दिया। अभी वे बातें कर ही रहे थे कि भीतर के कमरे से उसकी सहेली पद्मा निकलकर बाहर आ गई। पद्मा को देखकर अनुभव चौंक उठा। अनुभा ने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है। वह उसकी सहेली है और उसी के साथ रहती है। पद्मा बड़ी बेतकल्लुफी से दोनों के बीच आकर बैठ गई। सहसा अनुभा उठकर भीतर चली गई। पद्मा ने उसे बाहों में भींच लिया। न चाहते हुए भी अनुभव को पद्मा के साथ वही सब करना पड़ा। अब वह घर जाने के लिये उठा, बहुत कमजोरी महसूस कर रहा था। दोनों ने चुंबन लेकर उसे विदा किया।
इसके बाद से अनुभव, उनसे मिलने में कतराने लगा। उनके फोन आते, वह काट देता। एक दिन अनुभा ने स्कूल में उसे मोबइल फोन पर उतारी वीडियो क्लिपिंग दिखाई और कहा कि अगर वह आने से इंकार करेगा तो वह इसे सबको बता देगी।
अनुभव डर गया और गाहे-बगाहे उनके कमरे पर जाने लगा। एक दिन अनुभव के मित्र सुरेश ने उससे कहा कि वह थकाथका सा क्यों लगता है। अद्र्धवार्षिक परीक्षा में भी उसे कम नंबर मिले थे।
अनुभव रोने लगा। उसने सुरेश को सारी बता बता दी। सुरेश के पिता पुलिस इंस्पेक्टर थे। उसने अनुभव को उनसे मिलवाया। सारी बात सुनने के बाद वे बोले- तुम्हारी उम्र कितनी है?
- अठारह साल।
- और उनकी?
- इसी के लगभग।
- क्या तुम उनके पास का वह मोबाइल, उठाकर ला सकते हो?
- मुझे फिर वहां जाना होगा।
- हां, एक बार।
अबकी बार जब अनुभा का फोन आया वह काफी ना-नुकूर के बाद हुबहू उसी के जैसा मोबाइल लेकर उनके कमरे में पहुंचा। दो घंटा समय बिताने के बाद जब वह लौटा, उसके पास अनुभा का मोबाइल था।
मोबाइल क्लिपिंग देखकर इंस्पेक्टर साहब चकित रह गये। यह उनके जीवन में अजीब तरह का केस था। उन्होंने अनुभव से एक शिकायत लिखवाकर दोनों लड़कियों को थाने बुलवा भेजा।
पूछताछ के दौरान लड़कियां बिफर गईं और उल्टे पुलिस पर चरित्र हत्या का इल्जाम लगाने लगीं। उन्होंने कहा कि अनुभव सहपाठी के नाते आया जरूर था, किंतु उसके साथ ऐसी-वैसी कोई गंदी हरकत नहीं की गई।
अब इंस्पेक्टर ने मोबाइल क्लिपिंग दिखाई। दोनों के सिर शर्म से झुक गये। इंस्पेक्टर ने कहा कि वे उनके माता-पिता और प्रिंसिपल को उनकी इस हरकत से अवगत करायेंगे।
लड़कियां, इंस्पेक्टर के पांव पकड़कर रोने लगीं। इंस्पेक्टर ने कहा कि इस जुर्म में उन्हें सजा हो सकती है। समाज में बदनामी होगी और स्कूल से निकाली जाओगी, सो अलग। उनके द्वारा बार-बार क्षमा मांगने के बाद इंस्पेक्टर ने अनुभव की शिकायत पर लिखवा लिया कि वे आगे से ऐसी कोई हरकत नहीं करेगी।
अनुभव ने वह स्कूल छोड़कर दूसरे स्कूल में दाखिला ले लिया। साथ ही उसने अपने मोबाइल की सिम बदल दी।
इस घटना को सात साल गुजर गये। अनुभव पढ़-लिखकर कम्प्यूटर इंजीनियर बन गया। इसी बीच उसके पिता नहीं रहे। मां की जिद थी कि वह शादी कर ले। अनुभव ने मां से कहा कि वह अपनी पसंद की जिस लड़की का भी चुनाव करेगी, वह उसी से शादी कर लेगा।
अनुभव को अपनी कंपनी से बहुत कम छुट्टी मिलती थी। ऐन फेरे के दिन वह बमुश्किल घर आ पाया। शादी खूब धूमधाम से संपन्न हो गई।
सुहागरात के दिन अनुभव ने जैसे ही दुल्हन का घूंघट उठाया, वह चौंक पड़ा। पलंग पर लाजवंती सी घुटनों से सिर दबाये अनुभा बैठी थी।
तुम?
हां मैं! मैं अपराधों का प्रायश्चित करने अब जीवन भर के लिये फिर तुम्हारी देहरी पर आ गई हूं। (आनन्द बिल्थरे – विनायक फीचर्स)