Happy Father’s day 2021: पिता वृक्ष की छाँव…

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पिता वृक्ष की छाँव,
पिता प्रीत का गाँव ।
दिल दरिया सा निर्मल,
पर शख्त नियम के पाँव।
हिमगिरि सा है तटस्थ सदा,
सहे सब विघ्नों के दाँव।
हम सब उनकी आँखों के तारे,
वह भव पार उतारना नाव।
उनकी छाती पर हम कूदे,
कैसे मैं ये बिसराऊँ।
हाथी घोड़े थे वो अपने,
कैसे भूल ये जाऊँ ।
उंगली पकड़ चलना सिखलाया,
अक्षर क्रम का ज्ञान कराया ।
पुरुषार्थ चतुष्टय बतलाए,
मानवता का पाठ पढ़ाया।
हौसलों की भी उड़ान दी,
नभ को छूना सिखलाया ।
कैसे कैसे कष्ट सहे पर,
कुछ हमको न बतलाया।
कृष्ण से बने सदा सारथी,
विजय पथ की ओर बढ़ाया ।
वे हमारे झुमरी तलैया,
उनकी छाया में सुख पाऊँ ।
भगवान सरीखे पिता हमारे,
बारम्बार पाँव छू आऊँ ।
गले लगाते आज भी हँसकर,
चंदन से सिर माथ चढ़ाऊँ।।
डा संज्ञा ‘प्रगाथ



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