स्थापना दिवसः जै हो कुमाऊं जै हो गढ़वाला, पढ़िए पांडवों से लेकर राज्य गठन तक उत्तराखंड का इतिहास

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उत्तराखंड की स्थापना 9 नवंबर 2000 को हुई थी। पहले यह उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, लेकिन लंबे समय से एक अलग राज्य की मांग की जा रही थी, खासकर पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों द्वारा, जो विकास में पिछड़े हुए थे और प्रशासनिक उपेक्षा का सामना कर रहे थे। आखिरकार, भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 पारित किया, जिसके बाद उत्तराखंड को भारत का 27वाँ राज्य घोषित किया गया। प्रारंभ में इसका नाम उत्तरांचल रखा गया, लेकिन जनवरी 2007 में इसे आधिकारिक रूप से बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून है, जबकि ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में गैरसैंण को भी चुना गया है।

उत्तराखंड की राजभाषा हिंदी है। इसके अलावा, संस्कृत को राज्य की द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया गया है।राज्य में हिंदी और संस्कृत के साथ-साथ गढ़वाली और कुमाऊँनी जैसी क्षेत्रीय भाषाएं भी व्यापक रूप से बोली जाती हैं। हालाँकि, हिंदी प्रशासनिक और शैक्षिक कार्यों में प्रमुखता से प्रयोग की जाती है, लेकिन गढ़वाली और कुमाऊँनी बोलियों का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व है और ये भाषाएँ स्थानीय लोगों की पहचान का हिस्सा हैं।

उत्तराखंड में कई भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं, जो राज्य की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती हैं। मुख्य रूप से, राज्य की प्रमुख बोलियाँ गढ़वाली और कुमाऊँनी हैं, जो गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में व्यापक रूप से बोली जाती हैं। इसके अलावा, राज्य में कुछ अन्य क्षेत्रीय बोलियाँ भी प्रचलित हैं। यहाँ उत्तराखंड में बोली जाने वाली प्रमुख बोलियों की सूची दी गई है:

  1. गढ़वाली – गढ़वाल मंडल (जैसे, देहरादून, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली जिलों) में बोली जाती है।
  2. कुमाऊँनी – कुमाऊं मंडल (जैसे, नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, पिथौरागढ़, उधम सिंह नगर) में बोली जाती है।
  3. जौनसारी – मुख्य रूप से देहरादून जिले के जौनसार-बावर क्षेत्र में बोली जाती है।
  4. रंवाली (रं) – पिथौरागढ़ जिले में, विशेष रूप से रं समुदाय के बीच बोली जाती है।
  5. ब्योंग्सा (ब्यांग्सी) – यह भी पिथौरागढ़ जिले में कुछ जनजातियों द्वारा बोली जाती है।
  6. थारू – उधम सिंह नगर और कुछ तराई क्षेत्रों में थारू जनजाति द्वारा बोली जाती है।
  7. जैँशरी – जौनसार-बावर क्षेत्र में कुछ स्थानों पर बोली जाती है।
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इनके अलावा, कुछ छोटे क्षेत्रों में स्थानीय बोलियाँ और भाषाएँ भी प्रचलित हैं, जो खासकर जनजातीय समुदायों द्वारा बोली जाती हैं। उत्तराखंड में हिंदी भी एक संपर्क भाषा के रूप में उपयोग की जाती है, लेकिन स्थानीय बोलियों का सांस्कृतिक महत्व अब भी बहुत गहरा है। उत्तराखंड में वर्तमान में कुल 13 जिले हैं, जिन्हें दो मंडलों (प्रमुख प्रशासनिक क्षेत्रों) में विभाजित किया गया है: कुमाऊं मंडल और गढ़वाल मंडल

1. कुमाऊं मंडल के जिले:

  • अल्मोड़ा
  • बागेश्वर
  • चंपावत
  • नैनीताल
  • पिथौरागढ़
  • उधम सिंह नगर

2. गढ़वाल मंडल के जिले:

  • चमोली
  • देहरादून
  • हरिद्वार
  • पौड़ी गढ़वाल
  • रुद्रप्रयाग
  • टिहरी गढ़वाल
  • उत्तरकाशी

उत्तराखंड का इतिहास सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध और प्राचीन है। इसे “देवभूमि” यानी देवताओं की भूमि के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यहाँ कई प्राचीन मंदिर और तीर्थस्थल स्थित हैं। उत्तराखंड का इतिहास मुख्य रूप से उसके प्राचीन राजवंशों, धार्मिक महत्व, और विभिन्न आंदोलनों पर आधारित है।

उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अनेक आंदोलनकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1994 में अलग राज्य के लिए किए गए आंदोलन के दौरान अनेक लोग सक्रिय रूप से शामिल हुए और उन्होंने विभिन्न स्तरों पर योगदान दिया। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में शामिल लोगों की एक लंबी सूची है, जिसमें प्रमुख आंदोलनकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र नेता, पत्रकार और आम जनता शामिल थे। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में कई लोगों ने अपनी जान भी गंवाई, विशेष रूप से 1994 में हुए मुजफ्फरनगर और मसूरी में गोलीकांड में, जहाँ पुलिस द्वारा आंदोलनकारियों पर गोलीबारी की गई थी।

  1. मुजफ्फरनगर कांड (2 अक्टूबर 1994) – इस घटना में उत्तराखंड राज्य की मांग के समर्थन में लखनऊ जाने वाले आंदोलनकारियों पर पुलिस ने अत्याचार किए, जिससे कई आंदोलनकारी घायल और शहीद हुए।
  2. मसूरी गोलीकांड – मसूरी में राज्य आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों पर गोलीबारी की गई, जिससे कई लोग मारे गए और घायल हुए।
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उत्तराखंड राज्य आंदोलन में हजारों आंदोलनकारियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया और अपने अपने स्तर पर योगदान दिया। आज भी उत्तराखंड के कई शहरों और कस्बों में राज्य आंदोलनकारी स्मारक बने हुए हैं, जो उन शहीदों और आंदोलनकारियों की याद दिलाते हैं जिन्होंने इस राज्य के गठन के लिए संघर्ष किया।

1. प्राचीन काल

  • उत्तराखंड का उल्लेख वेदों, पुराणों, महाकाव्यों और प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है। महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में इसे “उत्तरकुरु” और “केदारखंड” के रूप में उल्लेखित किया गया है। माना जाता है कि पांडवों ने अपने अंतिम समय में हिमालय क्षेत्र में यात्रा की थी और यहाँ के कई धार्मिक स्थलों पर पूजा-अर्चना की थी।
  • केदारनाथ, बद्रीनाथ, और गंगोत्री जैसे स्थान इस क्षेत्र में स्थित हैं, जो हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थल हैं।

2. कत्युरी राजवंश (7वीं से 11वीं शताब्दी)

  • कत्युरी राजवंश उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में प्रमुख था। उन्होंने बागेश्वर, बैजनाथ, और कत्यूर घाटी में अपनी राजधानी स्थापित की।
  • इस काल में कई मंदिरों का निर्माण हुआ, जिनमें से कुछ आज भी महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों के रूप में प्रसिद्ध हैं।

3. चंद राजवंश (11वीं से 18वीं शताब्दी)

  • कत्युरी वंश के पतन के बाद, चंद राजवंश ने कुमाऊं क्षेत्र में शासन किया। उन्होंने अल्मोड़ा को अपनी राजधानी बनाया और वहाँ कई सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान दिए।
  • चंद शासकों के शासनकाल में कला, संस्कृति और मंदिर निर्माण में काफी वृद्धि हुई।

4. गढ़वाल का पंवार राजवंश

  • गढ़वाल क्षेत्र में पंवार वंश का शासन था, जिसकी राजधानी पहले चांदपुर गढ़ी थी और बाद में इसे श्रीनगर (गढ़वाल) में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • 1803 में नेपाल के गोरखा शासकों ने गढ़वाल और कुमाऊं पर कब्जा कर लिया। 1815 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने गोरखाओं को हराया और गढ़वाल का पश्चिमी हिस्सा ब्रिटिशों को दे दिया गया।
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5. ब्रिटिश काल (1815-1947)

  • 1815 में अंग्रेजों ने कुमाऊं और गढ़वाल के कुछ हिस्सों पर अधिकार कर लिया। इस दौरान इन क्षेत्रों में शिक्षा, वन विभाग, और सड़कों का विकास हुआ।
  • ब्रिटिश शासन के दौरान ही यहाँ से कई स्वतंत्रता सेनानी उठे, जिन्होंने आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया।

6. स्वतंत्रता संग्राम और राज्य आंदोलन

  • ब्रिटिश शासन से आजादी के बाद, उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा बना रहा। स्वतंत्रता संग्राम के बाद यहाँ के लोग अपनी विशिष्ट भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान के कारण एक अलग राज्य की मांग करने लगे।
  • 1994 में, अलग राज्य की मांग ने जोर पकड़ा, जिसमें व्यापक जन समर्थन और आंदोलन हुए।

7. उत्तराखंड राज्य का गठन (2000)

  • कई वर्षों के संघर्ष और आंदोलन के बाद, भारत सरकार ने उत्तराखंड को एक अलग राज्य के रूप में मान्यता दी। 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर भारत का 27वाँ राज्य बनाया गया।
  • प्रारंभ में इसे उत्तरांचल नाम दिया गया, जिसे 2007 में बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया।

8. वर्तमान में उत्तराखंड

  • आज उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व, और पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है। यह राज्य हिमालय की गोद में बसा होने के कारण पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
  • राज्य की राजधानी देहरादून है, और हाल ही में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में नामित किया गया है।

उत्तराखंड का इतिहास केवल राजाओं और उनके राज्य तक सीमित नहीं है; यहाँ की संस्कृति, लोककथाएँ, और धार्मिक मान्यताएँ इसे भारत के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों में से एक बनाती हैं।

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जीवन राज (एडिटर इन चीफ)

समाजशास्त्र में मास्टर की डिग्री के साथ (MAJMC) पत्रकारिता और जनसंचार में मास्टर की डिग्री। पत्रकारिता में 15 वर्ष का अनुभव। अमर उजाला, वसुन्धरादीप सांध्य दैनिक में सेवाएं दीं। प्रिंट और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म में समान रूप से पकड़। राजनीतिक और सांस्कृतिक के साथ खोजी खबरों में खास दिलचस्‍पी। पाठकों से भावनात्मक जुड़ाव बनाना उनकी लेखनी की खासियत है। अपने लंबे करियर में उन्होंने ट्रेंडिंग कंटेंट को वायरल बनाने के साथ-साथ राजनीति और उत्तराखंड की संस्कृति पर लिखने में विशेषज्ञता हासिल की है। वह सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर ही नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स हैं जो हमेशा कुछ नया सीखने और ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। देश के कई प्रसिद्ध मैगजीनों में कविताएं और कहानियां लिखने के साथ ही वह कुमांऊनी गीतकार भी हैं अभी तक उनके लिखे गीतों को कुमांऊ के कई लोकगायक अपनी आवाज दे चुके है। फुर्सत के समय में उन्हें संगीत सुनना, किताबें पढ़ना और फोटोग्राफी पसंद है। वर्तमान में पहाड़ प्रभात डॉट कॉम न्यूज पोर्टल और पहाड़ प्रभात समाचार पत्र के एडिटर इन चीफ है।