कुमाऊं के स्टार जितेन्द्र तोमक्याल: मदकोट से निकलकर कुमाऊंनी म्यूजिक इंडस्ट्री में कमाया नाम
Haldwani News: उत्तराखंड के समृद्ध लोकसंगीत में अगर किसी का नाम जगमगाता है, तो वह है जितेन्द्र तोमक्याल। एक ऐसा कलाकार जिसने कुमाऊंनी संगीत को न केवल देशभर में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पहचान दिलाई। उनकी गायकी और मंचीय प्रदर्शन के कारण उन्हें उत्तराखंड के संगीत का अग्रणी चेहरा माना जाता है।
जीवन परिचय
जितेन्द्र तोमक्याल का जन्म 1 फरवरी 1987 को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील के मदकोट गांव में हुआ। एक राजपूत परिवार में जन्मे जितेन्द्र के पिता, गोपाल सिंह तोमक्याल, उत्तराखंड पुलिस के पीएसी विभाग से सेवानिवृत्त हैं। संगीतप्रेमी परिवार के बीच पले-बढ़े जितेन्द्र के बचपन में ही संगीत के बीज अंकुरित हो गए।
संगीत यात्रा की शुरुआत
गांव की पारंपरिक लोकधुनों और पिता के संगीत प्रेम ने उनकी प्रेरणा का स्रोत तैयार किया। 2007 में, उन्होंने अपने पहले एल्बम “मेरा दिल मा” से उत्तराखंड के संगीत जगत में कदम रखा। इस एल्बम ने उन्हें पहली बड़ी पहचान दी और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
प्रमुख उपलब्धियां और पहचान
अब तक 700 से अधिक गानों को आवाज़ दे चुके जितेन्द्र तोमक्याल ने अपनी मेहनत और लगन से कुमाऊंनी संगीत में आधुनिकता और परंपरा का खूबसूरत संतुलन स्थापित किया। उनके गाने जैसे “आंखों में चश्मा,” “संगीता मैं फोन,” “ओ दीपा भाबरा,” और “ओ हेमा” सुपरहिट रहे।
उनकी लाइव परफॉर्मेंस का जादू ऐसा है कि दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। वे न केवल भारत के पर्वतीय इलाकों बल्कि दुबई, मस्कट, कतर, कुवैत और अबुधाबी जैसे देशों में भी अपनी प्रस्तुतियां दे चुके हैं।
व्यक्तिगत जीवन
जितेन्द्र का विवाह 20 नवंबर 2014 को हुआ। उनके परिवार में पत्नी, एक बेटा और एक बेटी हैं। अपने व्यस्त जीवन के बावजूद वे अपने परिवार के साथ समय बिताने का महत्व समझते हैं।
लोकप्रिय गाने और योगदान
जितेन्द्र के गीतों में कुमाऊं की संस्कृति, प्रकृति, और प्रेम की कहानियां झलकती हैं। उनके हिट गानों की सूची में शामिल हैं:
- “खिड़की में बैठी तू बाल बनोनि”
- “बागेश्वर की विमला छोरी”
- “रूमाली का गांठा”
- “ओ रंगीली धाना हौसिया परान”
- “संगीता मैं फोन करूलो”
- “नीमा काफल पाकला नर सिंह डांडा”
- “साली दीपिका घुंगरू बजे दे”
संस्कृति के संवाहक
जितेन्द्र तोमक्याल ने कुमाऊंनी संगीत को आधुनिक संगीत प्रेमियों तक पहुंचाने के साथ-साथ युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ा है। उनके गाने उत्तराखंड की लोकसंस्कृति को संरक्षित करने और उसे नई पहचान दिलाने का माध्यम बने हैं।
समाज और युवाओं के लिए प्रेरणा
छोटे गांव से निकलकर बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने की उनकी यात्रा लाखों युवाओं के लिए प्रेरणादायक है। उनके संघर्ष, समर्पण और सफलता की कहानी इस बात का प्रमाण है कि सीमित साधनों के बावजूद अगर जुनून और मेहनत हो, तो कोई भी मंजिल पाई जा सकती है।
सम्मान और पुरस्कार
उनके योगदान के लिए उन्हें विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। जितेन्द्र तोमक्याल न केवल उत्तराखंड के सांस्कृतिक दूत हैं, बल्कि उन्होंने राज्य और देश का गौरव भी बढ़ाया है। जितेन्द्र तोमक्याल का नाम आज कुमाऊंनी संगीत का पर्याय बन गया है। उनकी गायकी और संगीत की अनूठी शैली ने उन्हें लोकसंगीत की दुनिया में एक अमिट पहचान दिलाई है। उनके गीत और परफॉर्मेंस उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखने का काम करते हैं।