बहारों की रानी हूँ मैं…

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बहारों की रानी हूँ मैं,
सावन की जवानी हूँ मैं।
प्रेम की लिखती कथा,
भादों का पानी हूँ मैं ।
सूरज हैं चाचा मेरे,
किरण उजाली हूँ मैं।
मिटाती घना अन्धेरा,
चन्दा चकोरी हूँ मैं ।
चल रही अनवरत,
नदिया की धारा मैं ।
प्यार ही प्यार हो,
जो कर दूँ इशारा मैं ।
यूँ ही नहीं मैं बहारों की रानी,
यूँ ही नहीं मैं पवन की दीवानी ।
रंग बसंती सदा मुझपे फबता,
धरती की चूनर धानी हूँ मैं ।
आओ पिला दूँ तुम्हें प्रेम प्याला,
षड ऋतुओं की सुन्दर बयानी हूँ मैं ।
डॉ संज्ञा प्रगाथ



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