उत्तराखंडः (शाबास)- हल्द्वानी में बेसहारा जानवरों की मसीहा बनी निकिता, रखती है बच्चों जैसा ख्याल…

Haldwani News (Jeevan Raj)- दुनिया में ऐसे भी कई लोग हैं, जो पशु-पक्षियों से बेहद प्यार करते हैं। कुत्ते, बिल्ली, गाय जैसे जानवरों को अपने घर-परिवार का बेहद अहम हिस्सा मानते है। हल्द्वानी की निकिता सुयाल की जिंदगी दिन-रात बेजुबान पशुओं की देखभाल में गुजर रही है। सड़क पर घूम रहे मवेशियों की तकलीफ को देखकर उनकी आंखें भर आती हैं। उनकी सेवा के लिए वह अपने घर खर्चे और परिवार के सदस्यों द्वारा की गई मदद से देखभाल और उपचार जैसी व्यवस्थाएं करती है। यह सिलसिला पिछले चार वर्षों से चला आ रहा है। वह किसी भी जानवर को सड़क पर लाचार नहीं देख सकतीं। बीते चार सालों में वो एक, दो या फिर दर्जन-भर नहीं, बल्कि 100 से अधिक जानवरों का इलाज करवा चुकी हैं। पशुओं की सेवा को ही वह अपनी जिंदगी का मकसद मानती हैं। आगे पढ़िए…

हल्द्वानी के पंचायत घर निवासी निकिता अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहती हैं। बचपन से ही उन्हें पशुओं से बेहद लगाव रहा है। जब वह पहली बार गौ सेवकों की मदद से एक घायल बैल को घर लेकर आयी तो उसका प्यार पशुओं के प्रति और बढ़ गया। इस इलाज डाॅ रेनू चैहान द्वारा किया गया। जिसका नाम उन्होंने डमरू रखा। इसके बाद उन्होंने घायल पशुओं को इलाज अपने घर खर्चे से करना शुरू किया और पशु लगातार पूरी तरह से स्वस्थ होते गये। यह देख उन्हें बेहद खुशी हुई। उसके उपचार के बाद उन्होंने बड़े जानवरों के बारें में सोचने पर मजबूर कर दिया। आखिर बेजुबान जानवरों को तो पीड़ा होती है, लेकिन इन बेजुबान पशुओं की कौन सुनता है। आगे पढ़िए…

इसके बाद निकिता ने अपने घर के समीप एक शेल्टर होम का निर्माण कराया। जहां वो बड़े पशुओं का इलाज करती हैं। इस कार्य में उनके पति नीरज सुयाल ने उनका भरपूर सहयोग किया। इस शेल्टर होम का नाम उन्होंने आश्रय केयर सेंटर रखा। जहां वर्तमान में गाय-बैल, कुत्ते और बिल्ली समेत दर्जनभर से अधिक पशु मौजूद है। उन्होंने बताया कि वह से 100 से ज्यादा बड़े जानवरों का इलाज कर चुकी है। जिसमें कई पशु चिकित्सक भी उनका साथ दे रहे है। अब धीरे-धीरे उनके यहां पशुओं की संख्या बढ़ रही है। उनके यहां कई पशु ऐसे भी जो अन्य जिलों से उपचार के लिए लोगों द्वारा भेजे गये है। आगे पढ़िए…
निकिता बताती है कि उनकी मां हमेशा ही उन्हें इस काम के लिए प्रेरित करती रहती है और आर्थिक रूप से सहयोग भी करती हैै। बीते चार सालों में कई तरह के उतार-चढ़ाव उनकी जिंदगी में आये, जब अपने परिवार और बच्चों के साथ-साथ पशुओं को भी समय देना होता था। लेकिन उन्होंने हर दुविधा को पार किया। वह कहती है मेरे काम करने का तरीका नहीं बदला। मेरी बस यही कोशिश है कि कोई जानवर सड़क पर न मरे। मैं किसी को मरते नहीं देख सकती। मुझे खुशी है कि लोग अब मेरे प्रयासों की सराहना करने लगे हैं और मदद की पेशकश करते हैं। पशुओं के प्रति प्यार को देखते हुए लोग अब निकिता को बेसहारा जानवरों की मसीहा कहने लगे है।





