उत्तराखंड: दीपावली के 11 दिन बाद मनाई जाती बूढ़ी दिवाली, जानिये कैसे मनाया जाता है इगास पर्व…

खबर शेयर करें

Egas Bagwal 2022: दीपावली के 11 दिन बाद मनाए जाने वाले ईगास बग्वाल पर्व पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है। सीएम धामी ने ट्वीट पर इसकी जानकारी दी। ट्वीटर लिखे आदेश में उन्होंने कहा, उत्तराखण्ड की समृद्ध लोकसंस्कृति कु प्रतीक लोकपर्व ‘इगास’ पर अब छुट्टी रालि। हमारू उद्देश्य च कि हम सब्बि ये त्यौहार तै बड़ा धूमधाम सै मनौ, अर हमारि नई पीढी भी हमारा पारंपरिक त्यौहारों से जुणि रौ। सीएम की इस घोषणा से प्रदेश के लोगों में खुशी है। सचिव सामान्य प्रशासन विनोद कुमार सुमन द्वारा जारी आदेश के अनुसार शुक्रवार चार नवंबर को इगास बग्वाल पर्व पर सार्वजनिक अवकाश रहेगा। यह अवकाश सभी शासकीय व अशासकीय कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों व कार्यालयों के साथ ही बैंक, कोषागार व उपकोषागार में भी रहेगा।

यह भी पढ़ें 👉  अल्मोड़ा: चौखुटिया जा रही बोलेरो में मोहान के पास खाई में गिरी, चालक की मौत, 4 घायल

कार्तिक मास में दीपावली के ग्यारह दिन बाद इगास का पर्व पर्वतीय अंचल में धूमधाम से मनाया जाता है। लोग अपने घरों को दीये की रोशनी से सरोबार करते हैं। घरों में तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की विशेष पूजा की जाती है। भैला ओ भैला, चल खेली औला, नाचा कूदा मारा फाल, फिर बौड़ी एगी बग्वाल … लोक गायक गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के इस गीत में गांवों में दीवाली और इगास उत्सव की महत्ता को बयां किया गया है। दीपावली के बाद इगास का त्योहार गांव-गांव श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड:(बड़ी खबर)- तीन IAS अधिकारियों के तबादले, इन्हें बनाया उधमसिंह नगर जिले का नया डीएम

घरों में विशेष साज-सज्जा के साथ तरह-तरह के पकवान तैयार किए जाते हैं। पारंपरिक भैलो नृत्य इस पर्व का खास आकर्षण होता है, जो आपसी सौहार्द और सहभागिता का संदेश देता है। तिल, भंगजीरे, हिसर और चीड़ की सूखी लकड़ी के छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर इन्हें विशेष रस्सी से बांधकर भैलो तैयार किया जाता है। बग्वाल के दिन पूजा अर्चना कर भैलो का तिलक किया जाता है। फिर ग्रामीण एक स्थान पर एकत्रित होकर भैलो खेलते हैं। भैलो पर आग लगाकर इसे चारों ओर घुमाया जाता है। कई ग्रामीण भैलो से करतब भी दिखाते हैं।  

पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद जब अयोध्या लौटे थे, तो लोगों ने अपने घरों में दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। लेकिन कहा जाता है कि तब गढ़वाल मंडल पर्वतीय क्षेत्रों में यह सूचना दीपावली के 11 दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली, जिससे वहां दीपावली के 11 दिन बाद बूढ़ी दिवाली (इगास) धूमधाम से मनाई जाती है। इसी पर्व को लेकर एक अन्य मान्यता यह भी है कि वीर माधो सिंह भंडारी की सेना दुश्मनों को परास्त कर दीपावली के 11 दिन बाद जब वापस लौटी तो स्थानीय लोगों ने दीये जलाकर सैनिकों का स्वागत किया। 

जीवन राज (एडिटर इन चीफ)

समाजशास्त्र में मास्टर की डिग्री के साथ (MAJMC) पत्रकारिता और जनसंचार में मास्टर की डिग्री। पत्रकारिता में 15 वर्ष का अनुभव। अमर उजाला, वसुन्धरादीप सांध्य दैनिक में सेवाएं दीं। प्रिंट और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म में समान रूप से पकड़। राजनीतिक और सांस्कृतिक के साथ खोजी खबरों में खास दिलचस्‍पी। पाठकों से भावनात्मक जुड़ाव बनाना उनकी लेखनी की खासियत है। अपने लंबे करियर में उन्होंने ट्रेंडिंग कंटेंट को वायरल बनाने के साथ-साथ राजनीति और उत्तराखंड की संस्कृति पर लिखने में विशेषज्ञता हासिल की है। वह सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर ही नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स हैं जो हमेशा कुछ नया सीखने और ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। देश के कई प्रसिद्ध मैगजीनों में कविताएं और कहानियां लिखने के साथ ही वह कुमांऊनी गीतकार भी हैं अभी तक उनके लिखे गीतों को कुमांऊ के कई लोकगायक अपनी आवाज दे चुके है। फुर्सत के समय में उन्हें संगीत सुनना, किताबें पढ़ना और फोटोग्राफी पसंद है। वर्तमान में पहाड़ प्रभात डॉट कॉम न्यूज पोर्टल और पहाड़ प्रभात समाचार पत्र के एडिटर इन चीफ है।