कविता: नहीं, मैं उर्मिला नहीं…

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नहीं, मैं उर्मिला नहीं,
जो बिछड़े पति की याद में,
तारे गिन गिन गुमसुम सी हो जाऊँ ।
दिन रात तकूँ उनकी राहें,
कुमुदिनी सी कुम्हला जाऊँ ।

नहीं,मैं मीरा भी नहीं,
पिय हरि में सुध बुध खो बैठूँ,
नाम रटत सब बिसराऊँ ।
आस न हो पल एक मिलन की,
दरस की प्यासी मर जाऊँ ।
नहीं,अहिल्या भी नहीं मैं,
समाज के भय से आतंकित हो,
झूठे दोष को अपनाऊँ ।
सहकर अपमान के घूँट हजारों,
जड़वत् पत्थर हो जाऊँ ।

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मैं आधुनिक युग की बाला हूँ,
हैं विचार मेरे कुछ अलग थलग ।
सच है पिय साए नेह बहुत है,
कठिन है रहना होके विलग ।

किन्तु यदि वह छोड़ गया,
होके निष्ठुर तन्हाई में।
छीन मेरे सपनों के मोती ,
जो दुबक गया परछाईं में ।

क्यों उसकी फिर राह तकूँ मैं,
रेत के फिर क्यों महल बनाऊँ ।
पतझड़ में गिरे पीत पात सम,
क्यों न यादों पर धूल उड़ाऊँ ।

क्यों न राह नई चुनूँ मैं,
अपना अस्तित्त्व स्वयं बनाऊँ ।
बनके हारिल गगनांगन में,
उड़ उड़ रंग नए भर आऊँ ।

और विचारों के जुगनूँ सब,
तराश पंक्तिबद्ध बिखराऊँ ।
शब्दों के पुष्प गुच्छ सब चुन चुन,
कलम से अंकुर नव उपजाऊँ ।।
डॉ संज्ञा प्रगाथ
इकौना श्रावस्ती (उ प्र )

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जीवन राज (एडिटर इन चीफ)

समाजशास्त्र में मास्टर की डिग्री के साथ (MAJMC) पत्रकारिता और जनसंचार में मास्टर की डिग्री। पत्रकारिता में 15 वर्ष का अनुभव। अमर उजाला, वसुन्धरादीप सांध्य दैनिक में सेवाएं दीं। प्रिंट और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म में समान रूप से पकड़। राजनीतिक और सांस्कृतिक के साथ खोजी खबरों में खास दिलचस्‍पी। पाठकों से भावनात्मक जुड़ाव बनाना उनकी लेखनी की खासियत है। अपने लंबे करियर में उन्होंने ट्रेंडिंग कंटेंट को वायरल बनाने के साथ-साथ राजनीति और उत्तराखंड की संस्कृति पर लिखने में विशेषज्ञता हासिल की है। वह सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर ही नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स हैं जो हमेशा कुछ नया सीखने और ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। देश के कई प्रसिद्ध मैगजीनों में कविताएं और कहानियां लिखने के साथ ही वह कुमांऊनी गीतकार भी हैं अभी तक उनके लिखे गीतों को कुमांऊ के कई लोकगायक अपनी आवाज दे चुके है। फुर्सत के समय में उन्हें संगीत सुनना, किताबें पढ़ना और फोटोग्राफी पसंद है। वर्तमान में पहाड़ प्रभात डॉट कॉम न्यूज पोर्टल और पहाड़ प्रभात समाचार पत्र के एडिटर इन चीफ है।