कोसी की कल-कल करती पावनता, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर ‘सोमेश्वर घाटी’

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Someshwar Valley: आज हम आपको उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित सोमेश्वर घाटी की प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व के बार में बताने जा रहे है। यहाँ की हरी-भरी वादियां और खेती के क्षेत्र सोमेश्वर घाटी को और खास बनाते हैं। सोमेश्वर नाम आते ही महादेव भगवान शिव का नाम जहन में आता है। सोमेश्वर में भी शिव का मंदिर है, जिसे सोमेश्वर महादेव मंदिर के लिए जाना जाता है, मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है और आसपास के गांवों से श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं। यह स्थान शिव भक्तों के लिए खास महत्व रखता है, विशेषकर महाशिवरात्रि के समय यहां विशेष पूजा और मेले का आयोजन होता है। सोमेश्वर वाकई उत्तराखंड की एक अनमोल धरोहर है, जहां का प्राकृतिक सौंदर्य और शांति मन को तृप्त कर देती है। यहां से हिमालय की बर्फीली चोटियों का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है, जो इसे और भी विशेष बनाता है। सोमेश्वर का शांत वातावरण, यहां के हरे-भरे खेत, ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और स्थानीय संस्कृति का अनुभव पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसके आसपास स्थित रमणीय गाँव सामेश्वर से लोद घाटी तक, सोमेश्वर से मनान, सोमेश्वर से मनसारी नाला और सामेश्वर से कौसानी इसकी सुंदरता में चार चांद लगाने और इसे और भी आकर्षक बनाते हैं। सोमेश्वर में घूमना हर मौसम में एक अलग अनुभव देता है, और यही कारण है कि यह उत्तराखंड के प्रमुख आकर्षणों में से एक है।

’पिलग्रिम्स वण्डरिंग्स इन द हिमाला’ में सोमेश्वर का जिक्र

इसकी खूबसूरती के दीवाने अंग्रेज भी थे। पी. बैरन और अंग्रेज प्रशासक बैटन जैसे यात्रियों और प्रशासकों का सोमेश्वर घाटी के प्रति ऐसा विशेष प्रेम और उसकी सुंदरता का वर्णन इस क्षेत्र की अद्वितीयता को दर्शाता है। पी. बैरन, जो पिलग्रिम के नाम से यात्रा लेखन करते थे, उन्होंने वर्ष 1832 में उत्तराखंड के इन पहाड़ी क्षेत्रों की यात्रा करते हुए सोमेश्वर घाटी की प्राकृतिक संपदा को लेकर जो अनुभव साझा किए, वे आज भी प्रासंगिक हैं। वर्ष 1844 में प्रकाशित उनकी किताब ’पिलग्रिम्स वण्डरिंग्स इन द हिमाला’ में सोमेश्वर की भव्यता और यहां के समृद्ध कृषि जीवन को उन्होंने खुले दिल से सराहा। उन्होंने घाटी की खूबसूरती, खेती की समृद्धि और लोगों की खुशहाल जीवनशैली को बेहद खास माना था। अंग्रेज प्रशासक बैटन ने भी इसी घाटी को एशिया की सबसे खूबसूरत घाटियों में से एक कहकर इसकी महत्ता और सुंदरता को सम्मानित किया। उनके इस दृष्टिकोण से जाहिर होता है कि सोमेश्वर न केवल प्राकृतिक संपदा से भरी है बल्कि इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आयाम भी अद्वितीय हैं। ये प्रमाणित करता है कि उत्तराखंड का यह हिस्सा न केवल आज बल्कि सदियों से अपने अप्रतिम सौंदर्य, समृद्ध संस्कृति और प्राकृतिक वैभव के कारण सैलानियों और प्रशासकों को अपनी ओर आकर्षित करता आया है।

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पर्वतीय सौंदर्य, कोसी की कल-कल करती पावनता

वाकई में सोमेश्वर प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर हैं। यहां का पर्वतीय सौंदर्य, कोसी की कल-कल करती पावनता और आध्यात्मिक शांति का अनूठा मेल हैं, जो हर किसी का मन मोह लेते हैं। यहां का शांत वातावरण,  सर्दियों में बर्फ से ढके खोड़ी की पहाड़िया़, और प्राकृतिक सुंदरता लोगों को अपनी ओर खींचते हैं। सोमश्वर का सौंदर्य और रोमांच दोनों का संगम इसे एक अद्वितीय पर्यटन स्थल बनाता है। महादेव मंदिर में आकर जहां एक ओर श्रद्धा और शांति का अनुभव होता है, वहीं सोमेश्वर व्यू पॉइंट और चनौदा और लोद घाटी में लहराते खेत चारों ओर सर्दियों में बर्फ से ढकी चोटियों का नज़ारा किसी जन्नत से कम नहीं लगता। इन जगहों पर सर्दियों में होने वाली बर्फबारी का दृश्य अद्भुत होता है, और यही वजह है कि फोटोग्राफी प्रेमियों के लिए यह एक स्वर्ग जैसा है। सोमेश्वर घाटी का सौंदर्य न केवल प्राकृतिक परिदृश्यों में बल्कि यहां के लोक जीवन, परंपराओं और कृषि-संस्कृति में भी रचा-बसा है। कोसी और सांई नदियों के तट पर बसी इस घाटी की पहचान धान की फसल के लिए जानी जाती है। कौशल्या और शालिवाहिनी नदियाँ न केवल इस क्षेत्र को सिंचित करती हैं, बल्कि इन्हीं के तट पर बसे खेतों में हर साल दर्जनों किस्मों के धान की भरपूर पैदावार होती है। इस घाटी का धान उत्पादन के लिए प्रसिद्ध होना यहाँ की समृद्धि और कृषि कौशल का प्रतीक है। यहां की उपजाऊ भूमि पर धान, गेहूं, आलू, पिनालू और मडुवां (रागी) जैसी प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं। घाटी के आसपास के ग्रामीण जीवन का मुख्य आधार कृषि है, और यहां की हरी-भरी फसलें इस क्षेत्र की सुंदरता को और बढ़ाती हैं।

चन्द राजाओं के इतिहास को दर्शाती सोमेश्वर घाटी

इतिहासकारों के अनुसार सोमेश्वर घाटी का इतिहास चन्द राजाओं की शासन व्यवस्था और सामरिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। 16वीं शताब्दी में जब कुमाऊं की राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा स्थानांतरित की गई, तब चन्द राजाओं ने घाटी में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से यहां पर बलशाली बोरा समुदाय को बसाया। इस समुदाय की स्थापना के पीछे सैन्य बल और सामरिक सुरक्षा का उद्देश्य था, इसलिए इस क्षेत्र में प्राचीन समय में सैनिक छावनियों का होना एक सामान्य बात थी। घाटी का विस्तार वल्ला और पल्ला बोरारौ पट्टी में होने के कारण इसे ‘बोरारौ घाटी’ के नाम से भी जाना जाता है। रौ शब्द का अर्थ तालाब और जागीर दोनों होता है, जो इस क्षेत्र की प्राकृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को दर्शाता है। माना जाता है कि यह घाटी प्राचीन समय में तालाबों से भरपूर थी, जिनसे यहां की कृषि और जल स्रोतों को संपन्नता प्राप्त होती थी। इसके अलावा, बोरा लोगों के आधिपत्य और यहां की जागीर होने के कारण भी इस क्षेत्र को बोरारौ कहा गया। बोरारौ घाटी की पहचान न केवल प्राकृतिक सौंदर्य और कृषि से जुड़ी है, बल्कि यह इसके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामरिक महत्व को भी प्रतिबिंबित करती है। सोमेश्वर घाटी की यह विरासत आज भी यहां के लोक जीवन और परंपराओं में झलकती है, जो इस क्षेत्र को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करती है।

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हुड़किया बौल लोकगीत क्षेत्र की पहचान

हुड़किया बौल लोकगीत इस क्षेत्र की कृषि संस्कृति का अनमोल हिस्सा है। सामूहिक रूप से खेतों में धान की रोपाई करते समय ‘हुड़किया बौल’ की लय पर लोकगीत गाने का रिवाज यहां की विशेषता है, जो आज भी निरंतर चलता आ रहा है। अगर आप आज भी रोपाई के समय सोमेश्वर घाटी का भ्रमण करते है तो आपको खेतों में हुड़किया बौल पर काम करती महिलाएं नजर आयेंगी। इस सामूहिकता में ग्रामीणों का आपसी सहयोग, एकता और आनंद झलकता है। जब सभी किसान सामूहिक रूप से काम करते हुए इन लोक गीतों की धुन पर एक साथ आगे बढ़ते हैं, तो यह नज़ारा वास्तव में अद्भुत होता है। यह परंपरा न केवल कृषि कार्य में सहयोग की भावना को प्रोत्साहित करती है बल्कि इस क्षेत्र की सामूहिक उद्यमशीलता और सांस्कृतिक सौंदर्य का भव्य उदाहरण भी प्रस्तुत करती है। सामूहिक रूप से खेतों में काम करते हुए इन लोकगीतों का गायन उत्तराखंड की कृषि परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी यहां की समृद्ध लोक संस्कृति और जीवन शैली को जीवंत बनाए हुए है। लोकगीतों के प्रति यहां की पीढ़ी अपनी विरासत को संभाले हुए है। सुप्रसिद्ध लोकगायक स्व. मदनराम जी ने उत्तराखंडी लोकगायकी को एक नई पहचान दी। उनके भाई धनीराम ने भी अपने भाई के पदचिन्हों पर चलते हुए लोकगायकी को आगे बढ़ाया, हिट दीपा स्याल्दे शोभनाथा जैसे गीतों से सोमेश्वर घाटी को लोकगायकी के क्षेत्र में पहचान दिलाई। आज लोकगायकी की यह विरासत कई युवा संवारने में जुटे है। जिनमें लोकगायक महेश कुमार, गोपाल राम, जगदीश आगरी, राकेश कुमार, सुनील कैड़ा जैसे युवा गायक इस परंपरा और संस्कृति को बचाने में जुटे है।

एडवेंचर, ट्रैकिंग और नेचर वॉक का आनंद

ट्रैकिंग और नेचर वॉक के शौकीनों के लिए सोमेश्वर बेहतरीन विकल्प है। यहां की ट्रेल्स हर स्तर के ट्रैकर्स के लिए उपयुक्त हैं और रास्ते में हिमालय के सुरम्य दृश्य यात्रा को और भी रोचक बनाते हैं। रॉक क्लाइम्बिंग जैसे एडवेंचर एक्टिविटी से आप रोमांच का अनुभव कर सकते हैं और इन ऊंचाइयों पर चढ़ाई करते हुए प्रकृति के और करीब पहुंचते हैं। सोमेश्वर के सुंदर दृश्यों के बीच इन एडवेंचर एक्टिविटीज का आनंद वाकई जीवन भर की यादगार बन जाता है। सोमेश्वर और लोद के बीच सुकराड़ में गोल्डन फिल्ड कैपिंग जोन स्थित है, जो पर्यटकों के लिए ठहरने का उपयुक्त स्थान है, यह कैपिंग जोन आपको यहां की खूबसूरती हरे-भरे खेत, चिड़ियों की चहचहाट के साथ गर्मियों में दूनागिरी से चलने वाली ठंडी हवा और सर्दियों में गुनगुनी धूप आपकी यात्रा को जीवन भर संवार देगी। गोल्डन फिल्ड कैपिंग जोन के संचालकों द्वारा पर्यटकों को लोकल ट्रैकिंग भी कराई जाती है, साथ ही इस क्षेत्र में बर्ड वॉचिंग भी करायी जायेगीं। इसके अलावा आप यहां चाय बगान की सैर भी कर सकते है। अगर आप रानीखेत मार्ग, और अल्मोड़ा मार्ग दोनों ओर से आप गोल्डन फिल्ड कैपिंग जोन में आसानी से बिना किसी परेशानी के पहुंच सकते है। सोमेश्वर क्षेत्र में सामाजिक कार्यों में हमेशा आगे रहने वाले कुंदन सिंह भंडारी और कैलाश भेटारी द्वारा गोल्डन फिल्ड कैपिंग जोन का संचालन किया जा रहा है। वहीं सोमेश्वर में सिथत कॉटलैंड जंगल रिसोर्ट जहां  ठहरने का उचित प्रबंध है। यहां आपको कई तरह के फल जैसे सेब, कीवी पहाड़ी फलों के बागान देखने को मिलेगें। दिनभर घूमने के बाद आप यहां भी ठहर सकते है। जो महज सड़क से कुछ की दूरी पर स्थित हैं। सोमेश्वर में महादेव मंदिर के अलावा उदेयपुर गोलज्यू मंदिर, ऐड़ाद्यो मंदिर, पिनाथेश्वर मंदिर प्रसिद्ध है, जहां श्रद्धालु हर वर्ष हजारों की संख्या में दर्शनों को आते है। सोमेश्वर अल्मोड़ा जिले में स्थित होने के कारण, यहां से अल्मोड़ा के कई प्रमुख पर्यटक स्थलों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। अल्मोड़ा, जोकि एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है, यहां से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सोमेश्वर के पास रानीखेत और कौसानी जैसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी हैं, जो कुछ ही घंटों की दूरी पर हैं। सोमेश्वर से आपको प्रकृति की सुंदरता नजदीक से देखने का मौका मिलेगाा। अगर आप भी पहाड़ों में घूमने के शौकीन है तो एक बार सोमेश्वर की सैर जरूर करे।

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कैसे पहुंचे:

  • सड़क मार्ग:
  • सोमेश्वर सड़क मार्ग से अल्मोड़ा और रानीखेत से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। अल्मोड़ा से सोमेश्वर की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है और रानीखेत से यह लगभग 32 किलोमीटर दूर है।
  • रेल मार्ग:
  • निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो सोमेश्वर से लगभग 115 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से बस या टैक्सी द्वारा सोमेश्वर पहुंचा जा सकता है।
  • हवाई मार्ग:
  • निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा है, जो लगभग 135 किलोमीटर दूर है।

सोमेश्वर धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का एक अद्भुत मिश्रण है, जो शांत वातावरण और हिमालय की गोद में समय बिताने के इच्छुक पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह जानकारी आपको अच्छी लगी तो शेयर जरूर करें, जिससे लोगों को हमारे क्षेत्र के बारे में जानकारी मिल सकें।

नोट-यह लेख स्थानीय लोगों द्वारा दी गई जानकारी और गूगल से जुटाने तथ्यों की आधार पर लिखा गया है।

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जीवन राज (एडिटर इन चीफ)

समाजशास्त्र में मास्टर की डिग्री के साथ (MAJMC) पत्रकारिता और जनसंचार में मास्टर की डिग्री। पत्रकारिता में 15 वर्ष का अनुभव। अमर उजाला, वसुन्धरादीप सांध्य दैनिक में सेवाएं दीं। प्रिंट और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म में समान रूप से पकड़। राजनीतिक और सांस्कृतिक के साथ खोजी खबरों में खास दिलचस्‍पी। पाठकों से भावनात्मक जुड़ाव बनाना उनकी लेखनी की खासियत है। अपने लंबे करियर में उन्होंने ट्रेंडिंग कंटेंट को वायरल बनाने के साथ-साथ राजनीति और उत्तराखंड की संस्कृति पर लिखने में विशेषज्ञता हासिल की है। वह सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर ही नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स हैं जो हमेशा कुछ नया सीखने और ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। देश के कई प्रसिद्ध मैगजीनों में कविताएं और कहानियां लिखने के साथ ही वह कुमांऊनी गीतकार भी हैं अभी तक उनके लिखे गीतों को कुमांऊ के कई लोकगायक अपनी आवाज दे चुके है। फुर्सत के समय में उन्हें संगीत सुनना, किताबें पढ़ना और फोटोग्राफी पसंद है। वर्तमान में पहाड़ प्रभात डॉट कॉम न्यूज पोर्टल और पहाड़ प्रभात समाचार पत्र के एडिटर इन चीफ है।