Health Tips: जानिये गर्भाशय में रसौली की समस्या से निजात दिलाने के उपाय डाॅ. अमृता मखीजा से…
Haldwani News:हर महिला का सपना होता है कि वह मां बने। लेकिन कभी मां बनने में कई बीमारियां भी बाधक बन जाती है। बच्चेदानी में रसौली एक गैर-कैंसरकारी ट्यूमर होता है। इसका असर फर्टिलिटी और कंसीव करने की संभावना पर पड़ सकता है। गर्भाशय में रसौली को यूट्राइन फाइब्रॉएड कहा जाता है। यह बात मैट्रिक्स मल्टी स्पेशिलिटी हाॅस्पिटल हल्द्वानी में कार्यरत स्त्री रोग, प्रसूति, स्त्री कैंसर सर्जन व कॉस्मेटिक गाइनेकोलॉजिस्ट डाॅ. अमृता मखीजा ने कही।
गर्भाशय की रसौली को न करें अनदेखाः डाॅ अमृता
डाॅ. अमृता मखीजा बताती है कि गर्भाशय में रसौली अधिकांश 30 से 50 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में देखने को मिलती है। गर्भाशय की मांसपेशियों में गांठे बनने से महिला को रसौली की समस्या आती है। रोगी नॉन-कैंसर ट्यूमर का नाम सुनकर अक्सर घबरा जाते है की उन्हें कैंसर तो नहीं हो गया। ऐसे में आपको चिकित्सक के पास जाना चाहिए। अधिकांश चिकित्सक और विशेषज्ञ कहते है की रसौली कैंसर नहीं है। लेकिन इसको काफी समय तक अनदेखा किया जाए क्योंकि यह कैंसर की रूप ले सकता है। इसलिए हमे समय रहते ही गर्भाशय की रसौली का इलाज करवा लेना चाहिए।
बाँझपन की समस्या उत्पन करता है सर्वाइकल फाइब्रॉइड्स
स्त्री रोग, प्रसूति, स्त्री कैंसर सर्जन व कॉस्मेटिक गाइनेकोलॉजिस्ट डाॅ. अमृता मखीजा बताती है कि 25 से 44 उम्र की 30 प्रतिशत महिलाओं में रसौली के लक्षण देखे जाते हैं। इसका मतलब है कि प्रजनन की उम्र में महिलाओं में रसौली बनना आम बात है। रसौली अलग-अलग तरह की होती है। इनमें से एक रसौली गर्भाशय की बहार की ओर होती है तो उसे सर्वाइकल फाइब्रॉइड्स कहते है यह रसौली अक्सर बाँझपन में दिक्कत लाती है। अतः जिनको बाँझपन की समस्या है उनको जल्दी से सर्वाइकल फाइब्रॉइड्स रसौली का इलाज करवा लेना है। अगर आप गर्भाशय में रसौली की समस्या से परेशान है तो आप हल्द्वानी के मैट्रिक्स मल्टी स्पेशिलिटी हाॅस्पिटल में कार्यरत स्त्री रोग, प्रसूति, स्त्री कैंसर सर्जन व कॉस्मेटिक गाइनेकोलॉजिस्ट डाॅ. अमृता मखीजा से सलाह ले सकती है।
बच्चेदानी में रसौली के लक्षण-
माहवारी के दौरान अधिक खून आना।
पीरियड्स के दौरान तेज दर्द होना।
माहवारी आने से पहले ही स्पॉटिंग होना शामिल है।
ज्यादा ब्लीडिंग के कारण एनीमिया।
कई दिनों तक पीरियड्स रहना।
कमर के निचले हिस्से में दर्द होना।
बार-बार पेशाब का आना।
थकावट होना।
कमजोरी महसूस होना।
कब्ज की शिकायत होना।
कभी-कभी चिड़चिड़ापन होना।