लोककथा: चल तुमड़ी बाटो बाट, पढ़िये पहाड़ की दिलचस्प लोककथा

खबर शेयर करें

Story By Jeevan Raj: सर्दियों का मौसम शुरू हो चुका हैं। ऐसे में गांव में बिताये अपने बचपन के दिन याद आते है। जब पहाड़ों में एक-दो घरों में टीवी हुआ करता था, कही-कही से रोडियो की आवाज भी सुनाई देती थी। स्थिति आज के दौर से बिल्कुल उलट थी। शाम होते ही गांव में घुप्प अंधेरा। लोग लैम्पों के सहारे अपनी रात गुजारते थे। सर्दियों के मौसम में पहाड़ों में शाम ढलते ही लोग खाना बनाने में व्यस्त हो जाते। जल्दी-जल्दी खाना खाकर, बिस्तरे में चले जाते। बिस्तरे में जाने के बाद शुरू होती थी आण-काथ की गाथा। ऐसे में दादा-दादी के द्वारा कई तरह के लोककथााएं सुनाई जाती थी, जो काफी शिक्षाप्रद भी होती थी। उन्हीं में से एक कक्षा आज मुझे याद है, जो आज भी मेरे दिमाग में उसी तरह छपी है जैसी दादी ने सुनाई। आपने भी सुनीं होगी चल तुमड़ी बांटू-बाट।

मेरी आमा बड़े रोचक अंदाज में यह कथा हमें सुनाती थी। कथा कुछ इस तरह है। एक गांव में एक बुढिय़ा रहती थी। उसकी एक बेटी थी। धीरे-धीरे बेटी बड़ी होने लगी तो बुढिय़ां को उसकी शादी की चिंता हुई। बुढिय़ा ने अपनी बेटी की शादी दूर एक, दूसरे गांव में कर दी। कई महीने को गये बेटी मायके नहीं आयी तो बुढिय़ा को बेटी याद सताने लगी तो बुढिय़ा ने बेटी के यहां जाने की सोची। रात में बुढिय़ा ने अपनी बेटी के लिए पुड़ी, पुवे, हलवा, साग-सब्जी समेत कई पकवान बनाकर तैयार कर दिये। बुढिय़ा ने सोचा कि वह सुबह होते की अपनी बेटी के घर हो रवाना हो जायेंगी।

अगली सुबह बुढिय़ा जल्दी उठी और बेटी के घर जाने को तैयार हो गई। बेटी के घर जाने से पहले एक भारी जंगल पड़ता था। अत: जंगल से होकर ही जाना पड़ता था। जंगल में जंगली जानवरों का डर भी था, ऐसे मेंं बुढिय़ा डरते-डरते जंगल की ओर बढ़ी। जैसे ही जंगल के बीच पहुंची तो एक बाघ आता दिखा। वह बुढिय़ा के देखकर उसे खाने के लिए दौड़ा आया, बुढिय़ा ने थोड़ी हिम्मत दिखाई और कहा कि जब मि आपुण चेलि वा जूल, दूध व मलाई खूल, खूब मोटी हेबैर उन, तब तू मिके खै (जब मैं अपनी बेटी के यहां जाऊंगी वहां दूध-मलाई खाऊंगी फिर मोटी होकर आऊंगी तो तुम मुझे खा लेना)। यह सुन बाघ मान गया, उसने बुढिय़ा को जाने दिया। थोड़ी दूर जाने पर एक भालू मिल गया, फिर सियार। ऐसे ही कई जानवर बुढिय़ा को खाने को आ गये। सभी से बुढिय़ा ये यही बात दोहराई तो सभी मान गये। अब जानवर रोज बुढिय़ा के लौटने को इंतजार करते रहे। एक दिन ऐसा आया जब बुढिय़ा को वापस अपने घर आना था।

उसकी बेटी ने पुड़ी, सब्जी सब बनाकर एक पोटली बना दी और बुढिय़ा से जाने को कहा। यह सुन बुढिय़ा उदास हो गई, मां का दर्द देख बेटी से रहा नहीं गया। तो बेटी बोली (ईजा के हेगो) अर्थात मां क्या हो गया। इस पर बुढिय़ा ने घर से लेकर रास्ते भर की पूरी कहानी बेटी को सुनाई। थोड़ी देर सोचने के बाद बेटी घर के अंदर गई। एक बड़ा-सा तुमड़ी (सूखी की खोखली गोल वाली लौकी) लायी। कुछ मंत्र बोले, इसके अंदर उसने बुढिय़ा को डाल दिया और बुढिय़ा को एक पोटली में कुछ दिया। फिर उसके कान में कुछ बोला। इसके बाद तुमड़ी (सूखी की खोखली गोल वाली लौकी ) को जंगल के रास्ते में लुढक़ा दिया। तुमड़ी चलने लगी। जैसे ही तुमड़ी जंगल में पहुंची तो उसे सबसे पहले बाघ मिल गया। उसने तुमड़ी से पूछा ऐ तुमड़ी तूने उस बुढिय़ा को देखा जो अपनी लडक़ी के यहां गई थी मोटी होने के लिए। तभी तुमड़ी के अंदर से आवाज आयी।
चल तुमड़ी बांटू-बाट (चल तुमड़ी अपने रास्ते)
मि कै जाणू बुढिय़े बात (मैं क्या जानू बुढिय़ां की बातें)

इनता बोलकर तुमड़ी फिर आगे को चलने लगी। रास्ते में उसे भालू, सियार सभी मिल गये। उन्होंने भी बुढिय़ा के बारे में पूछा लेकिन तुमड़ी ने उन्हें भी यही कहा। तुमड़ी की बातें सुनकर सभी जानवर गुस्सा गये। उन्होंने तुमड़ी को पकडक़र चट्टान से नीचे धक्का दे दिया तो तुमड़ी तेजी से गिरते हुए एक पेड़ की टकरा गई और फूट गई। तुमड़ी फूटते ही उसमें से बुढिय़ा निकली। यह देख सभी जानवर दंग रह गये। सभी उसे खाने को दौड़े। कोई बोला पहले मैं खाऊंगा, कोई बोला पहले मैं खाऊंगा। बुढिय़ा ने फिर चालाकी से काम लिया। उसने कहा मैं एक पेड़ में जाती हूं, वहां से नीचे कूदूंगी, जो मुझे पहले पकडऩे, वहीं खायेगा। सभी जानवर राजी हो गये। बुढिय़ा को याद था कि उसकी बेटी ने एक पोटली दी है। बुढिय़ां पेड़ पर चढ़ गई सभी जानवर पेड़ की ओर बुढिय़ा को खाने का मौका देख रहे थे। बुढिय़ा ने पोटली खोली और उसमें से मिर्च निकालकर जानवरों की आंखों में झोंक दी। मिर्च पड़ते ही सभी जानवर इधर-उधर दौडऩे लगे। मौका पाकर बुढिय़ा भाग गई और सकुशल अपने घर पहुंच गई। बुढिय़ा की समझदारी ने उसे संकट से निकाल दिया।

नोट-(यह कथा मेरी दादी भागुली देवी द्वारा सुनाई गई कथाओं पर आधारित है।)

chal tumadi bato bat story
Ad
Ad
Ad Ad Ad
ashok kumar
Ad

पहाड़ प्रभात डैस्क

संपादक - जीवन राज ईमेल - [email protected]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *