उत्तराखंड: पूर्व सीएम हरदा को आई पुरानी याद, म्यर घरैकि काकड़ी तेरि जै हो, सर्दी-जुखाम लगा था, खा नहीं पाया…

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Uttarakhand News: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लगातार सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते है। हर बार कुछ न कुछ लिखते रहते है। पहाड़ के फलों और अनाजों के प्रति उनका प्रेम हर बार झलकता है। अब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने सोशल मीडिया पेज पर पहाड़ की ककड़ी के बारे है लिखा है। म्यर घरैकि काकड़ी तेरि जै हो, ऊपर गांव से कुछ ककड़ियां आ गई। सर्दी-जुखाम लगा था, खा नहीं पाया, बहुत मलाल हुआ। देहरादून से दिल्ली आते वक्त मौसम की खराबी के कारण फ्लाइट ने कुछ टाइम ज्यादा ले लिया तो मेरे मन में विचारों की एक लंबी श्रंखला काकड़ी को लेकर चल पड़ी। बचपन से लेकर 18-19 साल का होने तक न जाने किस-किस गांव की ककड़िया मैं और मेरे दोस्त खा गये! मगर किसी ने कभी रश्मि आक्रोश दिखाने के अलावा कुछ नहीं कहा और न कुछ करा। दूर-दूर के गाँव चल्सिया, पड़ोली की ककड़ियां भी खा गये, मगर किसी ने प्रिंसिपल साहब से आकर शिकायत नहीं की। हमारी करतूत को उम्रजन्य शरारत मानकर लोग गुस्सा होते थे, मगर फिर माफ कर देते थे। हमारे गांव में ठांगड़ी पर जंगल से चीड़ का जवान पेड़ काटकर के लाते थे और उन पर गड़वैंसी आदि की शाखाएं डालकर ककड़ी की बेल चढ़ाई जाती थी।

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मैं और चीजों की बेल में उतनी दिलचस्पी नहीं लेता था, मगर काकड़ी की बेल में और एक लोबिया होता है उसकी सब्जी मुझे बड़ी पसंद थी, उसकी बेल में मैं जरूर दिलचस्पी लेता था। मैं उनकी बेलों में रोज दो-दो बार पानी डालता था। जितना धूप के नजदीक ककड़ी होती है, उतनी ही वो स्वादिष्ट। क्या अद्भुत स्वाद होता था और स्वाद ने हमको ककड़ी_चोर भी बना दिया। मगर हमारा चोरी का फार्मूला बड़ा दिलचस्प था। पहले अपने घर की ककड़ी की चोरी करता था, उसको सब दोस्तों को खिलाता था, शाम के वक्त जहां हम कबड्डी खेलने के लिए एकत्रित होते थे, वहां यह सब पंच बटवारा होता था। प्रतिदिन रात को किसी न किसी घर की ककड़ी जरूर चोरी जाती थी और हम यह सुनिश्चित करते थे, जिस घर की ककड़ी चोरी गई है उस बच्चे को भी ककड़ी खिलाएं। फिर हम सब बच्चे उसके चारों तरफ घेरा डाल कर कहते कि अब तू मर जायेगा क्योंकि तुम्हारी माँ ने गाली दी है कि “ककड़ी चोर मर जाएं” और फिर हम सब मरने का नाटक करते थे, हर वर्ष 2 महीने हमारा यह नाटक चलता था। वो पहले तो समझ नहीं पाता था, फिर वो समझ जाता था कि मेरे दोस्तों ने ही ये ककड़ी की चोरी की है और मुझको मेरी ही घर की ककड़ी खिला दी है।

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यह क्रम सभी बच्चों तक चलता था और सारे गांव को मालूम था कि ये और कोई नहीं हैं, ये हमारे ही अपने बच्चे हैं। खैर जब आगे की कक्षाओं में गये तो चोरी के कार्य क्षेत्र का विस्तार भी हो गया। मेरे गांव में अब हम पुरानी ककड़ी चोर आठ एक लोग ही बचे हैं। कभी शादी-विवाह के मौके पर चोरी का जिक्र आता है तो हम सब प्रफुल्लित भाव से हंसते हैं। अब कहां, किस कीमत पर उस समय का बचपन पाया जा सकता है? हम आज के बचपन की रक्षा करें, यही ककड़ी चोरी का हमारा प्रायश्चित हो सकता है।

जीवन राज (एडिटर इन चीफ)

समाजशास्त्र में मास्टर की डिग्री के साथ (MAJMC) पत्रकारिता और जनसंचार में मास्टर की डिग्री। पत्रकारिता में 15 वर्ष का अनुभव। अमर उजाला, वसुन्धरादीप सांध्य दैनिक में सेवाएं दीं। प्रिंट और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म में समान रूप से पकड़। राजनीतिक और सांस्कृतिक के साथ खोजी खबरों में खास दिलचस्‍पी। पाठकों से भावनात्मक जुड़ाव बनाना उनकी लेखनी की खासियत है। अपने लंबे करियर में उन्होंने ट्रेंडिंग कंटेंट को वायरल बनाने के साथ-साथ राजनीति और उत्तराखंड की संस्कृति पर लिखने में विशेषज्ञता हासिल की है। वह सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर ही नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स हैं जो हमेशा कुछ नया सीखने और ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। देश के कई प्रसिद्ध मैगजीनों में कविताएं और कहानियां लिखने के साथ ही वह कुमांऊनी गीतकार भी हैं अभी तक उनके लिखे गीतों को कुमांऊ के कई लोकगायक अपनी आवाज दे चुके है। फुर्सत के समय में उन्हें संगीत सुनना, किताबें पढ़ना और फोटोग्राफी पसंद है। वर्तमान में पहाड़ प्रभात डॉट कॉम न्यूज पोर्टल और पहाड़ प्रभात समाचार पत्र के एडिटर इन चीफ है।