रीति-रिवाज : चैत्र में बेटी को भिटौली का इंतजार, पढिय़े भिटौली से जुड़ी पहाड़ की लोककथा…

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Exclusive BY JEEVAN RAJ: उत्तराखंड में कई त्यौहार मनाये जाते है। पहाड़ के रीति-रिवाज और त्यौहारों में पेड़ से लेेकर बेटी और कौवों तक के लिए परम्परा के अनुसार त्यौहार मनाने का प्रचलन है। इन्हीं में से एक पंरम्परा जो सदियों से चली आ ही भिटौली। चैत्र का महीना शुरू होते ही हर बेटी को अपनी भिटौली का इंतजार रहता है। कुमाऊं में बेटियों के लिए इसे सबसे खास माना जाता है। हालांकि अब लगातार इसकी परपंरा कम हो रही है। हां पहाड़ों में आज भी पिता या भाई ससुराल में बेटी या बहन को भिटौली देने जाते है। लेकिन पहाड़ों से हुए पलायन ने शहर में आकर भिटौली की परपंरा पर दाग लगाने का काम किया है, अब अगर कोई भिटौली देता भी है तो बहन को पैसे भेज देता है। आजकल के जमाने में ऑनलाइन पेमेंट पलभर में चली जाती है। पर असल भिटौली तो पुड़ी, सिगल, शैय्या, खजूरें, सूखी खीर, अक्षय पिठ्या, धोती-साड़ी और दक्षिणा बेटी को दी जाती है वहीं है। जिसका चैत्र के महीनें में बेटियों को इंतजार रहता है। आगे पढ़ें…

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फूलदेही से भिटौली का इंतजार

भिटौली का अर्थ भेंट करना है। पहाड़ के विषम भौगोलिक परिस्थितियों में विवाहित महिलाओं को वर्षों तक अपने मायके जाने का मौका नहीं मिल पाता था। ऐसे में चैत्र माह में मनाई जाने वाली भिटौली उन्हें अपने पिता और भाई से मिलने का मौका देती है। पहाड़ में यह परपंरा चैत्र माह से शुरू हो जाती है। चैत्र के पहले दिन फूलदेई से पूरे माहभर तक मनाया जाता है। भिलौटी पर कई लोकगीतों का वर्णन भी हुआ। इन गीतों में बेटी के दर्द को बंया किया गया है। कुमांऊ के चम्पावत जिले में चैत महीने में गुमदेश का चैतोल मेला और पिथौरागढ़ सोर की चैतोल भिटौली परंपरा से जुड़ा प्रतीत होता है। लोकगीत न बास घुघुति चैत की, मैं याद ऐ जांछी मैत की गीत प्रमुख है। भाई के लाये पकवान पूरे गांव में बांटे जाते थे। आजकल भिटौली एक औपचारिकता मात्र रह गई है। त्योहार की मान्यता है कि चैत को काला महीना कहते हैं। ऐसे में नवविवाहिता यानी नई दुल्हन को शादी के पहले वर्ष में चैत के पांच दिन ससुराल से बाहर रहने की रीति है। इसलिए शादी के बाद पहली भिटौली वैशाख में भेंट की जाती है। आगे पढ़ें…

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भिटौली की लोककथा भै भूखों, मैं सिती

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कहते है कि भिटौली पर लोककथा पहाड़ में बड़ी परचलित है। जिसमें गोरीधाना की दंतकथा बहुत प्रसिद्ध है, यह कथा आपको भाई-बहन के प्यार के साथ ही उनके एक-दूसरे के प्रति त्याग की भावना को उजागर करती है। आइये जानते है क्या है ये कथा- चैत्र के महीने में भाई अपनी बहन को भिटौली देने जाता है। काफी लंबा सफर तय कर वह अपनी बहन के ससुराल पहुंचा था। पहले आने-जाने के लिए गाडिय़ां नहीं होती थी तो लोग पैदल ही जाते थे, ऐसे में भाई बहुत थक गया था। लेकिन जब वह अपनी बहन के ससुराल पहुंचता है तो उसकी बहन सोई रहती है। भाई सोचता है कि उसकी बहन दिनभर काम करके सोई है ऐसे में उसे जगाना सही नहीं है। उसे आराम ही करने दिया जाय। और अगले दिन शनिवार होने के कारण बिना बहने से मिले वह उपहार उसके पास रख लौट जाता है। बहन के सोये रहने से उसकी भाई से मुलाकात नहीं हो पाती। जब बहन की आंख खुलती है तो वह अपने पास रखे उपहार को देखती है कि उसकी भिटौली आयी है लेकिन उसका भाई चले गया है। जिसके बाद बहन भै भूखों, मैं सिती भै भूखो, मैं सिती कहते हुए प्राण त्याग देती है। (यानी भाई भूखा रह गया मैं सोई रह गई, उसे भाई के जाने और उसके भूखे रहने का इतना दुख होता है कि वह अपने प्राण त्याग देती है।) कहते है कि बाद में बहन के पक्षी के रूप में जन्म लेती है और कहती है भै भूखों, मैं सिती भै भूखो, मैं सिती…

पहाड़ प्रभात डैस्क

समाजशास्त्र में मास्टर की डिग्री के साथ (MAJMC) पत्रकारिता और जनसंचार में मास्टर की डिग्री। पत्रकारिता में 15 वर्ष का अनुभव। अमर उजाला, वसुन्धरादीप सांध्य दैनिक में सेवाएं दीं। प्रिंट और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म में समान रूप से पकड़। राजनीतिक और सांस्कृतिक के साथ खोजी खबरों में खास दिलचस्‍पी। पाठकों से भावनात्मक जुड़ाव बनाना उनकी लेखनी की खासियत है। अपने लंबे करियर में उन्होंने ट्रेंडिंग कंटेंट को वायरल बनाने के साथ-साथ राजनीति और उत्तराखंड की संस्कृति पर लिखने में विशेषज्ञता हासिल की है। वह सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर ही नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स हैं जो हमेशा कुछ नया सीखने और ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। देश के कई प्रसिद्ध मैगजीनों में कविताएं और कहानियां लिखने के साथ ही वह कुमांऊनी गीतकार भी हैं अभी तक उनके लिखे गीतों को कुमांऊ के कई लोकगायक अपनी आवाज दे चुके है। फुर्सत के समय में उन्हें संगीत सुनना, किताबें पढ़ना और फोटोग्राफी पसंद है। वर्तमान में पहाड़ प्रभात डॉट कॉम न्यूज पोर्टल और पहाड़ प्रभात समाचार पत्र के एडिटर इन चीफ है।