हल्द्वानी: हर पीठ दर्द में सर्जरी जरूरी नहीं होती, कब मिले स्पाइन एक्सपर्ट से

Haldwani News: लगभग 80 प्रतिशत लोगों को जीवन में किसी न किसी समय कमर दर्द की समस्या होती है। यह नौकरी से जुड़ी विकलांगता का भी सबसे आम कारण है। अधिकतर मामलों में पीठ दर्द हल्का होता है और आराम, सही लाइफस्टाइल और दवाओं से ठीक हो जाता है। हालांकि कुछ स्थितियों में यह किसी गंभीर स्पाइन समस्या का संकेत भी हो सकता है, जिसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
पीठ दर्द के कई कारण हो सकते हैं। इनमें मांसपेशियों में खिंचाव या मोच, डिस्क प्रोलैप्स (जो कमर दर्द का सबसे आम कारण है), रेडिकुलोपैथी या सायटिका शामिल है, जिसमें नस पर दबाव या सूजन के कारण पैर या हाथ में दर्द, सुन्नता या झनझनाहट होती है। इसके अलावा स्पॉन्डिलोलिस्थेसिस में हड्डी का खिसकना, स्पाइनल इंजरी, स्पाइनल स्टेनोसिस (रीढ़ की नली का संकुचित होना), स्कोलियोसिस जैसी स्पाइन डिफॉर्मिटी, इंफेक्शन, आर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस भी कारण बन सकते हैं। कुछ दुर्लभ लेकिन गंभीर स्थितियों जैसे कॉडा इक्वाइना सिंड्रोम में पेशाब और शौच पर नियंत्रण खत्म हो सकता है और स्थायी न्यूरोलॉजिकल नुकसान का खतरा रहता है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, पटपड़गंज के न्यूरोसर्जरी विभाग के सीनियर डायरेक्टर डॉ. आशीष गुप्ता ने बताया “अगर आपको तेज गर्दन या पीठ दर्द है जो आराम करने से भी ठीक नहीं हो रहा, हाथ या पैर में सुन्नता या झनझनाहट है, गिरने या चोट के बाद दर्द हुआ है, दर्द हाथ या पैर तक फैल रहा है, पेशाब करने में परेशानी हो रही है या हाथ-पैर में कमजोरी महसूस हो रही है, तो तुरंत न्यूरो स्पाइन स्पेशलिस्ट से परामर्श लेना चाहिए। सही इलाज के लिए सबसे पहले मरीज की पूरी मेडिकल हिस्ट्री ली जाती है और न्यूरोलॉजिकल टेस्ट के साथ स्पाइन की जांच की जाती है। जरूरत पड़ने पर एक्स-रे, सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे इमेजिंग टेस्ट कराए जाते हैं, ताकि ट्यूमर, इंफेक्शन, डिस्क हर्निएशन या नस पर दबाव जैसी समस्याओं का पता लगाया जा सके। कुछ मामलों में इलेक्ट्रोडायग्नोस्टिक टेस्ट या बोन स्कैन भी किए जाते हैं।“
अच्छी बात यह है कि क्रॉनिक बैक पेन वाले ज्यादातर मरीजों को सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती। कंजर्वेटिव ट्रीटमेंट में गर्म या ठंडी सिकाई, शुरुआती स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज, धीरे-धीरे रोजमर्रा की गतिविधियों में वापसी, क्रॉनिक दर्द में मसल स्ट्रेंथनिंग एक्सरसाइज और दर्द कम करने की दवाएं शामिल होती हैं। कुछ मामलों में एपिड्यूरल स्टेरॉयड इंजेक्शन से भी अस्थायी राहत मिल सकती है।
डॉ. आशीष ने आगे बताया “सर्जरी तभी की सलाह दी जाती है जब नॉन-सर्जिकल इलाज से फायदा न हो। पहले जहां अधिकतर स्पाइन सर्जरी ओपन तरीके से होती थी, वहीं अब कई समस्याओं का इलाज मिनिमली इनवेसिव स्पाइन (MIS) सर्जरी से संभव है। इसमें बहुत छोटे चीरे लगते हैं और वीडियो-असिस्टेड टूल्स की मदद से सर्जरी की जाती है। इसके फायदे हैं कम ब्लड लॉस, मांसपेशियों को कम नुकसान, इंफेक्शन और पोस्ट-ऑपरेटिव दर्द का कम रिस्क, तेजी से रिकवरी और जल्दी काम पर वापसी। कुछ MIS प्रक्रियाएं डे-केयर भी होती हैं और केवल लोकल एनेस्थीसिया में की जा सकती हैं। MIS सर्जरी से डिस्क प्रोलैप्स, स्पाइनल स्टेनोसिस, स्कोलियोसिस, स्पाइनल इंफेक्शन, स्पाइन की अस्थिरता, वर्टिब्रल फ्रैक्चर, ट्रॉमा और स्पाइनल ट्यूमर जैसी स्थितियों का इलाज किया जाता है। सर्जिकल विकल्पों में वर्टिब्रोप्लास्टी और काइफोप्लास्टी (ऑस्टियोपोरोसिस से हुए फ्रैक्चर के लिए), लैमिनेक्टॉमी और फोरामिनोटोमी, डिस्केक्टॉमी, स्पाइनल फ्यूजन, आर्टिफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट और स्पाइन ट्यूमर या इंफेक्शन के लिए माइक्रोस्कोपिक व एंडोस्कोपिक सर्जरी शामिल हैं।“
पीठ को स्वस्थ रखने के लिए रोजाना कम से कम 30 मिनट वॉक, स्विमिंग या साइक्लिंग करें। योग से स्ट्रेचिंग, स्ट्रेंथ और पोश्चर बेहतर होता है। झुककर बैठने से बचें, सही लम्बर सपोर्ट के साथ बैठें, आरामदायक और लो-हील जूते पहनें। साइड में सोएं और घुटनों को हल्का मोड़कर रखें, साथ ही फर्म मैट्रेस का इस्तेमाल करें। भारी सामान उठाने से बचें और उठाते समय शरीर को न मोड़ें। संतुलित डाइट लें, जिसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में हों, और स्मोकिंग व शराब से दूरी बनाएं।





















