क्या होगा कल नहीं जानती…
क्या होगा कल नहीं जानती,
क्या बदले किस पल नहीं जानती ।
सच कहूँ कोई शिकायत नहीं है,
सच कहूँ दुश्मन भी कोई नहीं है ।
हाथ जोड़ करबद्ध प्रार्थना करती हूँ,
दिन रात प्रभु से यही वन्दना करती हूँ ।
मिटा दे वसुधा से सब तम,
हैं एक सदा रहें एक ही हम ।
गाएँ जीवन के सरगम,
प्रेम सदा बरसाएँ हम ।
प्रसन्न सदा हों धरती अम्बर,
मिटे द्वेष मित्थ्या आडम्बर ।
हम जीवन का आनंद उठाएँ,
बहें सुरीली मंद हवाएँ ।
बहे स्नेह सरिता जगती पर ,
आशीष प्रभु का हो बस हमपर ।
कभी क्रोध न हमको आए ,
चाह यही है मिलें दुआएँ ।
डॉ संज्ञा प्रगाथ