उत्तराखंड: विदेशियों को भी भाया पहाड़ी स्वाद, देशभर में छाये लोद वाले रमोला जी के भट्ट के डूबके
SOMESHWAR NEWS: (जीवन राज)- पहाड़ों में लोग स्वरोजगार के माध्यम ये जुड़ रहे है। ऐसे में कोरोनाकाल में कई युवाओं ने पहाड़ लौटकर स्वरोजगार अपना लिया। लेकिन इन सबसे हटकर जिन्होंने पहाड़ में रहकर स्वरोजगार पर पंख लगाये वो है अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर तहसील के लोद गांव निवासी गोपाल सिंह रमोला। जिन्हे भट्ट के डूबकों की खूशबू दूर-दूर तक फैली है। अगर आप भी भट्ट के डूबकों का आनंद लेना चाहते है तो एक बार जरूर गोपाल सिंह रमोला के यहां का स्वाद ले।
रानीखेत रोड लोद में बसे गोपाल सिंह रमोला ने पहाड़ प्रभात के संपादक जीवन राज से विशेष बातचीत की। रमोला ने बताया कि वह पिछले 20 सालों से यहां कारोबार करते आये है। इससे पहले उनकी कपड़े की दुकान थी। साथ ही वह चाय और चने बनाया करते थे, लेकिन क्षेत्र मेें कपड़े की मांग कम होने के चलते उन्होंने इसे बंद करना उचित समझा। इसे बाद उन्होंने झोली-भात, भट्ट के डूबके, आलू, चटनी आदि का एक छोटा सा ढाबा खोल लिया।
रमोला बताते है कि शुरू में उन्हें परेशानी हुई लेकिन धीरे-धीरे लोग उनके भट्ट के डूबके पसंद करने लगे। रानीखेत-कौसानी से आने वाले पर्यटकों को उनके भट्ट के डूबके भा गये फिर क्या था चल पड़ी रमोला जी की गाड़ी। इसी काम को उन्होंने धीरे-धीरे काम बढ़ाया। इसके बाद स्वरोजगार लोन लेकर एक होटल खोला, जिसमें वह भट्ट के डूबके, झोली-भात, आलू के गुटके, पहाड़ी चट्टनी बनाने लगे।
उनके भट्ट के डूबको का स्वाद लोगों को इस कदर छाया कि वह सोशल मीडिया से लेकर यू-ट्यूब पर छा गये। उनके भट्ट के डूबकों की खास बात यह है कि भट्टों को वह सिलबट्टे में पीसते है जो उसके स्वाद में चार चांद लगा देता है। इसके अलावा रमोला भट्ट के डूबकों में हींग, जब्बू, गनरैणी का इस्तेमाल करते है। उन्होंने बताया कि इस काम उनके बेटे और नाती भी उनका हाथ बंटाते है। वह भट्ट के डूबके बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे है। युवा कोरोनाकाल में पहाड़ लौटे लेकिन गोपाल सिंह रमोला ने पहाड़ मेें रहकर ही स्वोजगार को पंख लगा दिये।
इसी का नतीजा है कि आज उनके भट्ट के डूबके पूरे उत्तराखंड में ही नहीं अन्य राज्यों में भी छाये हुए है। सबसे ज्यादा पर्यटक उनके भट्ट के डूबको का स्वाद लेने पहुंचते है। विदेशी पर्यटक भी उनके भट्ट के डूबकों दीवाने है। सुंदर मनमोहक पहाड़ी के बीच बसे लोद घाटी को प्रकृति ने खूब सजोया है। इस क्षेत्र में धान के अलावा अन्य नकदी फैसलों की पैदावार खूब होती है। आज इन्हीं उत्पादों को गोपाल रमोला ने रोजगार का जरिया बना लिया।