दु:खद खबर: नहीं रहे उत्तराखंड के लोक कलाकार रामरतन काला, देखिये वो गीत जिससे काला को मिली थी बड़ी पहचान

Pahad Prabhat News Uttarakhand: उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संवारने वाले प्रख्यात कलाकार रामरतन काला ने बु़धवार रात पदमपुर स्थित आवास में अंतिम सांस ली। उनका निधन हृदय गति रूकने से हुआ। उनके निधन से उत्तराखंड के संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई। रामरतन काला को एक बड़े कलाकार के तौर पर जाना जाता था। रामरतन काला ने आकाशवाणी के नजीबाबाद केंद्र से प्रसारित लोकगीत मिथे ब्योला बड़ैं द्यावा, ब्योली खुजै द्वाव के अपनी पहचान बनाई्र थी।
उत्तराखंड अलग होने के बाद रामरातन ने कई गढ़वाली एलबमों में अभिनय से अपनी कलाकारी का लोहा मनवाया। उनके रंगमंच के सफर की शुरूआत वर्ष 1985 में हुई, वह पहली बार लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के साथ मुंबई पहुंचे और उत्तराखंड की संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत किए। इसके बाद उन्होंने कभी पिछे मुडक़र नहीं देखा। कुछ वर्ष पूर्व बीमारी के चलते उन्होंने रंगमंच की दुनिया को छोड़ दिया, लेकिन उत्तराखंड की संस्कृति से वे सदा जुुड़े रहे। नया जमना का छौरों कन उठि बौल, तिबरी-घंडिल्यूं मा रौक एण्ड रोल, तेरो मछोई गाड़ बोगिगे, ले खाले अब खा माछा, समद्यौला का द्वी दिन समलौणा ह्वैगीनि सहित कई गीतों में रामरतन ने अभिनय किया।
स्यांणी, नौछमी नारेणा, सुर्मा सरेला, हल्दी हाथ, तेरी जग्वाल, बसंत अगे जैसी कई अन्य वीडियो एलबमों में उनके अभियन का जलवा बिखेरा। भले ही कोटद्वार में हैं, लेकिन उनकी आत्मा पहाड़ों में बसती है। देर रात उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी, लोकगायक रमेश बाबू गोस्वामी, जितेन्द्र तोमक्याल, फौजी जगमोहन दिगारी, महेश कुमार, जगदीश आगरी, नवीन रावत, शिबू रावत, लोकगायिका दीपा नगरकोटी, हेमा आर्या सहित कई कलाकारों ने गहरा दुख प्रकट किया है।