विजयादशमी पर विशेष: राम राज्य की करें कामना…
जो वेदों शास्त्रों का ज्ञानी था,
जो लंका का स्वामी था।
लोभी लम्पट अभिमानी था,
वह पातक खल कामी था।
पर नारी हर लाया था,
सीता को धमकाया था।
पटरानी तुम बन जाओ,
मम घर आँगन बस जाओ।
पतिव्रता वह नारी थी,
वह हिम्मत न हारी थी।
उसने रावण को श्राप दिया,
श्राप ने फिर सर्वनाश किया।
हिरण्यमई लंका जल गई,
आलस का कुम्भकरण जागा।
व्यर्थ ही गर्जा मेघनाद,
तज देह धरा से वह भागा।
पूर्वजों से सुना है हमने,
विनाशकाल ज़ब आता है।
शठ को कितना भी समझा लो,
विपरीत ही कदम बढ़ाता है।
गुरु ने पत्नी ने नाना ने बहुत बहुत समझाया था,
किन्तु क्लीव उस दानव को
कुछ भी समझ न आया था
बात न मानी उस रावण ने
छल बल में जो था प्रवीण,
दशानन कहलाता था,
बुद्धि पर हो गई क्षीण।
अधर्म का बढ़ गया राज,
धर्म का फिर गया काज।
पापी को पाप ने तब मारा,
राम ने आकर संहारा।
काम क्रोध और लोभ मोह के,
रावण को बंधु मारो,
निज जीवन में झाँक तुरंत,
तृण तृण कंटक के उपरो।
मन अयोध्या हो जाए फिर,
राम राज्य तो आएगा।
शुचिता हो मन मंदिर में तो,
द्वेष क्षरण हो जाएगा।
जाति धर्म के भेद मिटाकर,
आओ सबको गले लगाएँ।
संस्कारों की बेल लगाकर,
अंकुर सुंदर चटकाएँ।
उदारता की खोल किंवाड़े
दीप ख़ुशी के चमकाएँ।
खिल उठे फिर धरती अंबर,
सूरज चंदा मुस्काऐं।
अलि काली मिलकर झूमें,
विजय दशमी त्यौहार मनाएँ।
धर्म कर्म का तीर धनुष ले
साहस के सुन्दर फूल खिलाएँ।
राम राज्य की करें कामना,
आओ विजयदशमी त्यौहार मनाएँ।।
डॉ संज्ञा प्रगाथ