कविता: शहीदों की गाथा…

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शहीदों की गाथा कण-कण में है
रज माथे पर लगाऊं तो कम होगा
रक्त नहीं अमृत है माटी में घुला हुआ
शीश नवाऊं पग -पग तो कम होगा।।
थर-थर कांपे बेरी हृदय डोल जाते हैं
देख -देख सीना चौड़ा प्राण भर आते है
गर्वित माथा देख वीरों का मन हर्षित होता
वीर कथा जितना सुनाऊँ कम होगा।।
शिशिर की रात्रि पल भर न ठिठुरते
गीष्ण ताप में कदम कभी न रूकते
आंधी अंधड़ की मार से जरा न सहमें
साहस वीरों का जितना बताऊँ कम होगा
तीन रंगों में रंगा तिरंगा तुमसे है
केसरिया में एक रंग तुम्हारा है
नीला चक्र चलता तुम्हारे कदमों से
महिमा वीरों की जितना सुनाऊँ कम होगा
परिवार भारत धरती को मान लिया
छोड़ कर रिश्ते देश से नाता जोड़ लिया
प्राण निज त्यागा मातृभूमि के लिए
बलिदानी गाथा जितना सुनाऊँ कम होगा।।

रश्मि मृदृलिका, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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