पिता तुम बिन कुछ भी नहीं मैं…
तिमिर सा जीवन लगे
तुम बिन जीवन अब
निराधार
निरर्थक लगे।
था सार्थक
तुम से जो
अब तुम बिन
बेमानी हुआ।
मुस्कान तुम्हारी
याद कर
मैं भी पुलकित
हो जाती हूँ
पर जिस पल
स्मरण होता सब
विस्मित सी रह
जाती हूँ
वो शीतलता अब
नहीं रही
मैं आंसुओं से
भर जाती हूँ।
पिता तुम बिन
कुछ भी नहीं मैं
तेरी प्यारी सी
नन्हीं परी मैं।
तेरी बाहों में
ये संसार देखा
तेरी अंगुली
पकड़कर चली मैं
पिता तुम बिन
कुछ भी नहीं मैं।
डॉ. दीपा सहायक प्रोफेसर
दिल्ली विश्वविद्यालय