उत्तराखंडः पहाड़ की परंपरा को संवारने की शानदार पहल, शुभकार्यों में शगुन आंखर गाने आयेंगा वाणी मांगल ग्रुप…

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Haldwani: (एक्सक्लूसिव जीवन राज )- समय के साथ-साथ उत्तराखंड के रीति-रिवाजों और संस्कृति में भी बदलाव आया है। पहले शादी-बरातों में शकुन आंखर गाये जाते थे अब कुछ एक जगहों पर यह सुनने को मिलते है लेकिन लगभग विलुप्त हो चुके है। नई पीढ़ी तो मांगल गीतों, विदाई गीतों और स्वागत गीतों को जैसे भी ही गई है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि वाणी मांगल ग्रुप अल्मोड़ा ने इसे संवारने का संकल्प लिया है। अब आपके शादी-विवाह में शगुन आंखर गीतों की जिम्मेदरी वाणी मांगल गु्रप संभालेगा। आगे पढ़िए…

पहाड़ों में हर कार्यक्रम में शकुन आंखर गीत गाने का रिवाज है जिसे अक्सर महिलाएं गाया करती है। शकुन आंखर, मांगल गीत, फाग या संस्कार गीत कहा जाता है। इन गीतों को जन्म से लेकर विवाह तक नामकरण, छठी, ब्रतबंद, गणेश वंदना, मातृका पूजन, जनेऊ संस्कार, कन्यादान के समय गाया जाता है। ये गीत बिना किसी वाद्य के महिलाओं द्वारा गाये जाते हैं। इन गीतों का मांगलिक कार्यों में बहुत महत्व होता है, महिलाओं की टोली विशेष रुप से इसे गाती है। लेकिन अब पहाड़ों में यह गीत विलुप्त हो चुके है। आगे पढ़िए…

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अच्छी खबर यह है कि अल्मोड़़ा के वाणी मांगल ग्रुप पहाड़ की इस परंपरा को संवारने में जुटा है। बकायदा उन्होंने इसके लिए एक टोली बनाई है। इस टीम का संचालन सविता वाणी कर रही है जबकि हंसी जोशी और लीला सिराड़ी उनका सहयोग कर रही है। जिससे पहाड़ की विलुप्त होती पंरपरा हो बचाया जा सकें। जो उत्तराखंड के लिए अच्छी खबर है। हम कही भी रहे लेकिन हमारी परंपरा  और रीति-रिवाज हमेशा जिंदा रहने चाहिए। ठीक यही कार्य वाणी मांगल ग्रुप अल्मोड़ा कर रहा है। अगर आप भी अपने शुभ कार्यों की शुरूआत शकुन आंखर और मांगल गीतों से करना चाहते है तो आप उनकी टीम से संपर्क कर सकते है।

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पहाड़ प्रभात डैस्क

संपादक - जीवन राज ईमेल - [email protected]

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