कविताःबहुत कुछ कहना है…

बहुत कुछ कहना है,
बहुत कुछ है सुनना ।
कुछ रेखाओं सी बातें हैं,
कुछ हैं रिमझिम बरसतों सी।
कुछ बातें अति कठोर हैं,
कुछ नव पल्लव की कोपल सी।
कुछ मधुर सरस वीणा धुन सी हैं,
कुछ कड़वी कटुक निबोरी सी।
रात से काली कुछ बातें हैं,
कुछ दिनकर सी उजली सी।
कुछ खट्टी हैं, कुछ मीठी हैं ,
कुछ मिट गईं थी मैली सी ।
यादें हैं तेरी मेरी कुछ उजली कुछ धुंधली सी।
थोड़ी सी कट्टी थोड़ी सी मुच्ची,
बनी रहे हमारी दोस्ती में मस्ती।। लेखकः डॉ. संज्ञा














