कविता: भीतर से ठंडी छाँव हैं पापा

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जैसे हमने पाया था,
वैसे ही पाया आज के पापा,
ऊपर से कड़कती धूप
भीतर से ठंडी छाँव हैं पापा।
आज भी पापा के पास जाकर सुकून मिलता है,
पापा का दिल आज भी हमारी सुनता है।
चोट पहले भी लगती थी तड़प जाते थे पापा
लग गई चोट आज भी मचल उठते हैं पापा।
कांधे पर बिठाकर तब भी प्रसन्न होते थे
पीठ पर बिठाकर आज भी घोड़ा बनते हैं पापा ,
खेल खिलौना बनकर हँसते रहते थे पापा ।
समस्याएं जो भी आईं सुमेरु होते थे पापा ,
आज भी हर मुश्किल में साथ निभाते हैं पापा ।
पापा ने ही दिखाए थे जीवन के अनगिन रंग ,
मिलवाया था दुनिया से देख थी मैं दंग।
उन्होंने सिखाया अपने हित लड़ना ,
धैर्य और साहस से ऊपर चोटी चढ़ना ।
मां थी अगर जमीन, तो आसमान थे पिता ,
बट वृक्ष के समान आज भी तटस्थ हैं पिता।
बस चलता तो हमारे हित नभ से तारे तोड़ लाते ,
बस चलता उनका तो ग़म के बादल कभी न छाते।
आज के पापा भी हारे न
सह गए सब आघातें।
नीलकंठ बन हंँस रहे हैं
खुशियों की धुनी रमाते।।
डॉ संज्ञा प्रगाथ श्रावस्ती यूपी

जीवन राज (एडिटर इन चीफ)

समाजशास्त्र में मास्टर की डिग्री के साथ (MAJMC) पत्रकारिता और जनसंचार में मास्टर की डिग्री। पत्रकारिता में 15 वर्ष का अनुभव। अमर उजाला, वसुन्धरादीप सांध्य दैनिक में सेवाएं दीं। प्रिंट और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म में समान रूप से पकड़। राजनीतिक और सांस्कृतिक के साथ खोजी खबरों में खास दिलचस्‍पी। पाठकों से भावनात्मक जुड़ाव बनाना उनकी लेखनी की खासियत है। अपने लंबे करियर में उन्होंने ट्रेंडिंग कंटेंट को वायरल बनाने के साथ-साथ राजनीति और उत्तराखंड की संस्कृति पर लिखने में विशेषज्ञता हासिल की है। वह सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर ही नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स हैं जो हमेशा कुछ नया सीखने और ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। देश के कई प्रसिद्ध मैगजीनों में कविताएं और कहानियां लिखने के साथ ही वह कुमांऊनी गीतकार भी हैं अभी तक उनके लिखे गीतों को कुमांऊ के कई लोकगायक अपनी आवाज दे चुके है। फुर्सत के समय में उन्हें संगीत सुनना, किताबें पढ़ना और फोटोग्राफी पसंद है। वर्तमान में पहाड़ प्रभात डॉट कॉम न्यूज पोर्टल और पहाड़ प्रभात समाचार पत्र के एडिटर इन चीफ है।