गुनगुनी सी धूप…

कितने सावन बीत गये
बहारें भी कितनी रूठ गई
सूने पड़े सावन के झूले
कुछ दबी ख्वाहिशें रह गई
खामोशियों में छूप गई है
न जाने दिल की कितनी बातें
मन के आंगन में, रिमझिम
कितनी, बरसी हैं बरसातें

मीठे लम्हों की कुछ यादें
कुछ गजलें मेरी ख्वाहिश के
वक्त पल पल गुजर रहा है
भूल ना पाई सपने, जन्नत के
कभी दामन को छूती, सर्द हवा
कभी मुस्काती, दोपहरी की धूप
जैसे पहली बारिश में, मिट्टी की खुशबू
तेरी यादों का शोर मचाती, गुनगुनी सी धूप ..!!
पूनम झा, नई दिल्ली।














