बेटी ने निभाया बेटे का फर्ज़, पिता की चिता को दी मुखाग्नि

खबर शेयर करें

बरेली | बेटियाँ अब सिर्फ घर तक सीमित नहीं रहीं, वे अब परंपराएं बदल रही हैं और समाज को नई दिशा दे रही हैं। ऐसा ही एक प्रेरणादायक उदाहरण बरेली के कर्मचारी नगर में सामने आया है, जहां एमिटी यूनिवर्सिटी में प्रोडक्ट डिज़ाइन से बैचलर डिग्री कर रही छात्रा अस्मिता जोशी ने अपने पिता के अंतिम संस्कार की सभी जिम्मेदारियाँ खुद उठाईं।

कर्मचारी नगर निवासी प्रमोद कुमार जोशी (61) का ब्रेन स्ट्रोक के कारण निधन हो गया। उनके परिवार में केवल एक ही संतान है—बेटी अस्मिता। पिता की मौत से परिवार में शोक की लहर थी, लेकिन जब अंतिम संस्कार की बात आई, तो परंपरा के अनुसार मुखाग्नि देने का सवाल खड़ा हो गया। रिवाजों के मुताबिक यह कार्य बेटे का होता है, लेकिन अस्मिता ने अपने सभी नजदीकी रिश्तेदारों और यहां तक कि पंडितों के विरोध के बावजूद खुद यह जिम्मेदारी निभाई। अंतिम संस्कार मॉडल टाउन श्मशान घाट पर हुआ, जहां अस्मिता ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। बेटियाँ सिर्फ घर की जिम्मेदारी नहीं निभा रहीं, अब वे परंपराओं को भी चुनौती दे रही हैं। बरेली के कर्मचारी नगर की रहने वाली अस्मिता जोशी ने अपने पिता के निधन के बाद ऐसा साहसिक कदम उठाया, जिसने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया।

प्रमोद कुमार जोशी (61) का ब्रेन स्ट्रोक के कारण निधन हो गया। उनके परिवार में केवल एक ही संतान हैं, बेटी अस्मिता, जो एमिटी यूनिवर्सिटी में प्रोडक्ट डिज़ाइन से बैचलर डिग्री कर रही हैं। मुखाग्नि देने से पहले अस्मिता ने एक और बड़ा कदम उठाया. उन्होंने बेटे की तरह अपने बाल भी कटवाए, ताकि किसी रस्म में कोई रुकावट न आए और समाज को यह संदेश दिया जा सके कि श्रद्धा और जिम्मेदारी का कोई लिंग नहीं होता। अंतिम संस्कार मॉडल टाउन श्मशान घाट पर हुआ, जहां अस्मिता ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। उनकी माँ अमिता जोशी ने इस फैसले में बेटी का पूरा साथ दिया और कहा,
“अगर बेटा नहीं है, तो क्या बेटी को हक़ नहीं है? मुझे अपनी बेटी पर गर्व है।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखण्ड: मुख्यमंत्री धामी ने केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री से हवाई सेवाओं के विस्तार पर की चर्चा

विरोध करने वालों को जवाब देते हुए अस्मिता ने कहा जब एक बेटी अपने पिता के जीवन का हर सुख-दुख बाँट सकती है, तो अंतिम विदाई भी क्यों नहीं दे सकती? माँ दुर्गा जोशी ने भी बेटी के इस फैसले का समर्थन किया और पूरे समय उसके साथ खड़ी रहीं। श्मशान घाट पर मौजूद कई लोग अस्मिता के साहस को देख भावुक हो गए। वहाँ मौजूद कुछ बुजुर्गों ने भी कहा कि समय आ गया है कि समाज को अपनी सोच बदलनी चाहिए। बेटियाँ अब हर मोर्चे पर बेटे से कम नहीं।अस्मिता जोशी का यह कदम सिर्फ एक अंतिम संस्कार नहीं था, यह सदियों पुरानी सोच को चुनौती देने वाला निर्णय था। अस्मिता ने दिखा दिया कि बेटियाँ सिर्फ संस्कारों को निभा ही नहीं सकतीं, बल्कि समाज को आगे बढ़ाने की काबिलियत भी रखती हैं।यह खबर उन तमाम बेटियों के लिए एक प्रेरणा है जो हर मोड़ पर अपने परिवार का सहारा बनती हैं—चाहे वह जीवन की शुरुआत हो या अंत की विदाई।

पहाड़ प्रभात डैस्क

समाजशास्त्र में मास्टर की डिग्री के साथ (MAJMC) पत्रकारिता और जनसंचार में मास्टर की डिग्री। पत्रकारिता में 15 वर्ष का अनुभव। अमर उजाला, वसुन्धरादीप सांध्य दैनिक में सेवाएं दीं। प्रिंट और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म में समान रूप से पकड़। राजनीतिक और सांस्कृतिक के साथ खोजी खबरों में खास दिलचस्‍पी। पाठकों से भावनात्मक जुड़ाव बनाना उनकी लेखनी की खासियत है। अपने लंबे करियर में उन्होंने ट्रेंडिंग कंटेंट को वायरल बनाने के साथ-साथ राजनीति और उत्तराखंड की संस्कृति पर लिखने में विशेषज्ञता हासिल की है। वह सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर ही नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स हैं जो हमेशा कुछ नया सीखने और ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। देश के कई प्रसिद्ध मैगजीनों में कविताएं और कहानियां लिखने के साथ ही वह कुमांऊनी गीतकार भी हैं अभी तक उनके लिखे गीतों को कुमांऊ के कई लोकगायक अपनी आवाज दे चुके है। फुर्सत के समय में उन्हें संगीत सुनना, किताबें पढ़ना और फोटोग्राफी पसंद है। वर्तमान में पहाड़ प्रभात डॉट कॉम न्यूज पोर्टल और पहाड़ प्रभात समाचार पत्र के एडिटर इन चीफ है।