बूढ़ी दीपावली: उत्तराखंड का लोकपर्व इगास, जानें इसकी ऐतिहासिक मान्यता और परंपरा

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 Igas bagwal 2024: दीपावली के 11वें दिन एकादशी पर उत्तराखंड में लोकपर्व इगास यानी बूढ़ी दीपावली मनाने की परंपरा है। उत्तराखंड में दिवाली के दिन को बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। जबिक कुमाऊं में दीवाली से 11 दिन बाद इगास यानी बूढ़ी दीपावली के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं। रात में स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला एक प्रकार की मशाल जलाकर उसे घुमाया जाता है और ढोल-नगाड़ों के साथ आग के चारों ओर लोक नृत्य किया जाता है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में यह पर्व विशेष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इगास पर्व के पीछे एक ऐतिहासिक मान्यता है, जो गढ़वाल के वीर योद्धाओं और उनके साहस से जुड़ी हुई है।

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इगास का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व:

मान्यता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष बाद लंका विजय कर अयोध्या पहुंचे तो लोगों ने दिए जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्योहार के रूप में मनाया। कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में लोगों को इसकी जानकारी 11 दिन बाद मिली। इसलिए यहां पर दिवाली के 11 दिन बाद यह इगास मनाई जाती है।
वहीं, सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे। करीब 400 साल पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा। इसी बीच बग्वाल (दिवाली) का त्यौहार भी था, परंतु इस त्योहार तक कोई भी सैनिक वापस न आ सका। सबने सोचा माधो सिंह और उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए, इसलिए किसी ने भी दिवाली (बग्वाल) नहीं मनाई। लेकिन दीपावली के ठीक 11वें दिन माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापस लौट आए। इसी खुशी में दिवाली मनाई गई। इसी कारण यह परंपरा इगास के रूप में चली आ रही है।

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इगास के प्रमुख अनुष्ठान:

  1. भैलो (भेलो) जलाना: इगास के दिन रात को लोग सूखे चीड़ के पेड़ की लकड़ियों का एक बड़ा जलता हुआ गोला बनाते हैं और इसे घुमाते हुए पारंपरिक गीत गाते हैं। इसे भैलो कहते हैं। इसे गांव की समृद्धि और खुशहाली के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
  2. पारंपरिक नृत्य और गीत: इस दिन लोग पारंपरिक वेशभूषा में सज-धजकर सामूहिक नृत्य करते हैं और विशेष गीत गाते हैं, जिनमें उनके लोकजीवन, खेती-बाड़ी और परंपराओं का बखान होता है।
  3. विशेष पकवान: इगास के अवसर पर विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें सिंगल (चावल का एक विशेष व्यंजन) और माल्टा (उत्तराखंड में मिलने वाला विशेष फल) का प्रयोग कर मिठाइयाँ बनाई जाती हैं।
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इगास का समाज पर प्रभाव

आज के समय में इगास न केवल पर्वतीय क्षेत्रों में बल्कि पूरे राज्य में मनाया जाने लगा है। यह पर्व उत्तराखंड के लोगों की अपनी संस्कृति और परंपरा के प्रति सम्मान और प्रेम का प्रतीक बन गया है।

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जीवन राज (एडिटर इन चीफ)

समाजशास्त्र में मास्टर की डिग्री के साथ (MAJMC) पत्रकारिता और जनसंचार में मास्टर की डिग्री। पत्रकारिता में 15 वर्ष का अनुभव। अमर उजाला, वसुन्धरादीप सांध्य दैनिक में सेवाएं दीं। प्रिंट और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म में समान रूप से पकड़। राजनीतिक और सांस्कृतिक के साथ खोजी खबरों में खास दिलचस्‍पी। पाठकों से भावनात्मक जुड़ाव बनाना उनकी लेखनी की खासियत है। अपने लंबे करियर में उन्होंने ट्रेंडिंग कंटेंट को वायरल बनाने के साथ-साथ राजनीति और उत्तराखंड की संस्कृति पर लिखने में विशेषज्ञता हासिल की है। वह सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर ही नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स हैं जो हमेशा कुछ नया सीखने और ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। देश के कई प्रसिद्ध मैगजीनों में कविताएं और कहानियां लिखने के साथ ही वह कुमांऊनी गीतकार भी हैं अभी तक उनके लिखे गीतों को कुमांऊ के कई लोकगायक अपनी आवाज दे चुके है। फुर्सत के समय में उन्हें संगीत सुनना, किताबें पढ़ना और फोटोग्राफी पसंद है। वर्तमान में पहाड़ प्रभात डॉट कॉम न्यूज पोर्टल और पहाड़ प्रभात समाचार पत्र के एडिटर इन चीफ है।