मैं एक पहाड़न…

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मैं एक पहाड़न
कल कल करते झरने
खेलें गोद में मेरी
नदियाँ उमड़ी
कि जैसे कोई बंजारन !
मैं एक पहाड़न !
धानी चुनरी में मेरी
जीवन पल्लवित है
वन वृक्ष लताद्रुम
खग और विहग है
आखेटक आक्रांतक भय को
देती अभयारण्य !
मैं एक पहाड़न !
वक्षस्थल पर मेरे
ममता बिखरी है
उन्नत ललाट पर
स्वर्णिम आभा निखरी है !
पिहू पिहू करते पपीहे की
ज्यूँ प्यासी चितवन !
मैं एक पहाड़न !
मृदु मनु मनुहार
मैं लाड लडाती
सुने हुए घर आँगन
मैं पथिक बुलाती !
रूप सुंदरी मैं
हाय ! फिर भी क्यूँ अभागन ?
मैं एक पहाड़न !
गीतांजलि मृदुल, देहरादून

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पहाड़ प्रभात डैस्क

संपादक - जीवन राज ईमेल - [email protected]

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